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________________ सत्य की खोज : अनेकान्त के आलोक में व्यवहार नय करता है। उसकी सीमा में आधार और आधेय, कार्य और कारण, कर्ता और कृति का सम्बन्ध है, वहां स्वतन्त्रता और परतन्त्रता की भी व्याख्या सम्भव है । स्वतन्त्रता का चिन्तन दो कोटि के दार्शनिकों ने किया है। धर्म के संदर्भ में स्वतन्त्रता का चिन्तन करने वाले दार्शनिक व्यक्ति की आन्तरिक प्रभावों (आत्मिक गुणों को नष्ट करने वाले आवेशों) से मुक्ति को स्वतन्त्रता मानते हैं। राजनीति के संदर्भ में स्वतन्त्रता का चिन्तन करने वाले दार्शनिक व्यक्ति की बाहरी प्रभावों (व्यवस्थाकृत दोषपूर्ण नियंत्रणों) के मुक्ति को स्वतन्त्रता मानते हैं। धर्म जागतिक नियमों की व्याख्या है, इसलिए उसकी सीमा में स्वतन्त्रता का सम्बन्ध केवल मनुष्य से नहीं किन्तु जागतिक व्यवस्था से है। राजनीति वैधानिक नियमों की व्याख्या है, इसलिए उसकी सीमा में स्वतन्त्रता का सम्बन्ध व्यक्तियों के पारस्परिक सम्बन्ध और संविधान से है । भारतीय धर्माचार्यों व दार्शनिकों ने अधिकांशतया धार्मिक स्वतन्त्रता की व्याख्या की है। उन्होंने राजनीतिक स्वतन्त्रता के विषय में अपना मत प्रकट नहीं किया। इसका एक कारण यह हो सकता है कि वे शाश्वत नियमों की व्याख्या में राजनीति के सामयिक नियमों का मिश्रण करना नहीं चाहते थे। उन्होंने शाश्वत नियमों पर आधारित स्वतन्त्रता की व्याख्या से राजनीतिक स्वतन्त्रता को प्रभावित किया किन्तु उसका स्वरूप निर्धारित नहीं किया। स्मृतिकारों और पौराणिक पंडितों ने राजनीतिक स्वतन्त्रता की व्याख्या की है। उन्होंने वैयक्तिक स्वतन्त्रता को बहत मुल्य दिया। पश्चिमी दार्शनिकों ने राजनीति के संदर्भ में स्वतन्त्रता और शासन-व्यवस्था की समस्या पर पर्याप्त चिन्तन किया । अरस्तू, ऐक्वाइनेस, लॉक और मिल आदि राजनीतिक दार्शनिकों ने वैयक्तिक स्वतन्त्रता को आधारभूत तत्त्व के रूप में प्रतिपादित किया। दूसरी ओर प्लेटो, माक्यावेलि, हाब्ज, हेगल और बर्क आदि राजनीतिक दार्शनिकों ने शासन-व्यवस्था को प्राथमिकता दी । राजनीतिक दार्शनिकों की दृष्टि में वही व्यक्ति स्वतन्त्र है जो कर्तव्य का पालन करता है-वही कार्य करता है जो उसे करना चाहिए । व्यक्ति के कर्तव्य का निधारण सामाजिक मान्यताओं और संविधान की स्वीकृतियों के आधार पर होता है। इस अर्थ में व्यक्ति सामाजिक और वैधानिक स्वीकृतियों का अतिक्रमण किए बिना इच्छानुसार कार्य करने में स्वतन्त्र है। इस स्वतन्त्रता का उपयोग सामाजिक और आर्थिक प्रगति में होता है। महावीर के दर्शन में स्वतन्त्रता का अर्थ है कषाय-मक्ति-क्रोध, मान, माया और लोभ से मक्ति । आवेशमक्त व्यक्ति ही स्वतन्त्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003147
Book TitleSatya ki Khoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size6 MB
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