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सत्य की खोज : अनेकान्त के आलोक में
नहीं करते थे और व्यक्तिगत जीवन की सीमा रखते थे। धन के अर्जन में प्रामाणिक साधनों का उपयोग न करना, संग्रह की निश्चित सीमा करना और व्यक्तिगत उपभोग का संयम करना-ये तीनों मिलकर 'इच्छा-परिमाण' व्रत का निर्माण करते हैं।
यह आर्थिक विपन्नता का व्रत नहीं है। धर्म और गरीबी में कोई सम्बन्ध नहीं है । गरीब आदमी ही धार्मिक हो सकता है या धार्मिक को गरीब होना चाहिए-यह चिन्तन महावीर की दृष्टि में त्रुटिपूर्ण है। धर्म की आराधना न गरीब कर सकता है
और न अमीर कर सकता है। जिसके मन में शांति की भावना जागृत हो जाती है वह धर्म की आराधना कर सकता है, फिर चाहे वह गरीब हो या अमीर । धार्मिक व्यक्ति गरीबी और अमीरी-दोनों से दूर होकर त्यागी होता है। हमने धर्म को एक जाति का रूप दे दिया। हमारे यग के धार्मिक जन्मना धार्मिक हैं। जो व्यक्ति जिस परम्परा में जन्म लेता है, उस वंश-परम्परा का धर्म उसका धर्म हो जाता है । जन्मना धार्मिक के लिए इच्छा-परिमाण का व्रत अर्थवान् नहीं है। यह उन लोगों के लिए अर्थवान् है जो कर्मणा धार्मिक होते हैं । ऐसे धार्मिक, साधु-संन्यासियों जितने विरल नहीं, फिर भी जनसंख्या की अपेक्षा विरल ही होते हैं। इसलिए उनके आधार पर न तो आर्थिक मान्यताएं स्थापित होती हैं और न वे आर्थिक प्रगति में अवरोध बनते हैं। अधिकांश धार्मिक जन्मना धर्म के अनुयायी होते हैं। वे आवश्यकताओं की कमी, अर्थ-संग्रह की कमी, विलासिता के संयम और नैतिक नियमों में विश्वास नहीं करते । उनका धर्म नैतिकता-शून्य धर्म होता है। धार्मिक होने के साथ-साथ नैतिक होना आवश्यक नहीं मानते । वे धर्म के प्रति रुचि प्रदर्शित करते हैं, पर उनका आचरण नहीं करते। ऐसे धार्मिकों का धर्म आर्थिक प्रगति को प्रभावित नहीं करता।
अर्थशास्त्र में आर्थिक प्रगति के लिए आवश्यकता बढ़ाने का सिद्धांत है । कुछ अर्थशास्त्री इसका मुक्त समर्थन करते हैं तो कुछ अर्थशास्त्री इसके मुक्त समर्थन के पक्ष में नहीं हैं। आवश्यकताओं को बढ़ाने के पक्ष में निम्न तर्क प्रस्तुत किए जाते
१. आवश्यकताओं की वृद्धि से मनुष्य को अधिकतम सुख या संतोष प्राप्त
होता है। आवश्यकताओं की वृद्धि सभ्यता के विकास और जीवनस्तर की उन्नति
में सहायक होती है। ३. आवश्यकताओं की वृद्धि से धन के उत्पादन में वृद्धि होती है। ४. आवश्यकताओं की वृद्धि से राज्य की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होती है
फलतः वह राज्य सैनिक दृष्टिकोण से सशक्त और अपनी रक्षा में आत्म-निर्भर
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