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धर्म से आजीविका : इच्छा परिमाण भगवान् महावीर ने कहा-'इच्छा आकाश के समान अनन्त है।' यह धार्मिक दृष्टि से जितना सत्य है उतना ही अर्थशास्त्रीय दृष्टि से सत्य है । अर्थशास्त्र के अनुसार मांग से आवश्यकता का क्षेत्र बड़ा होता है । इच्छा' का क्षेत्र उससे भी बड़ा होता है । सभी इच्छाएं आवश्यकताएं नहीं हो सकतीं, जबकि सभी आवश्यकताएं इच्छाएं अवश्य होती हैं । इच्छा से आवश्यकता का क्षेत्र संकुचित और मांग का क्षेत्र उससे भी संकुचित होता है।
मांग
आवश्यकताएं
इच्छाएं
इच्छा नैसर्गिक होती है। आवश्यकताएं भौगोलिक परिस्थिति, सामाजिक रीति-रिवाज, शारीरिक अपेक्षा. आर्थिक परिस्थिति और धार्मिक भावना के द्वारा निर्धारित होती हैं।
१. आवश्यकता-आवश्यकता मनुष्य की उस इच्छा को कहते हैं जिसको पूरा करने के लिए उसके पास
पर्याप्त धन हो और साथ ही वह मनुष्य उस धन को खर्च करने के लिए तैयार भी हो । २. मांग-मांग उस आवश्यकता को कहते हैं जिसकी संतुष्टि की जा चुकी है।
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