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________________ भगवान् महावीर : जीवन और सिद्धान्त रहा । अहिंसा की हिंसा पर विजय हुई। सर्प का क्रोध शांत हो गया। उसने सदा के लिए अहिंसा का वरण कर लिया । महावीर जैसे-जैसे साधना में आगे बढ़े, वैसे-वैसे उनकी चेतना में समता का सूर्य अधिक आलोक देने लगा । सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह - सब उस आलोक से आलोकित हो उठे । अरक्षा : सबसे बड़ी सुरक्षा महावीर ध्यान कर रहे थे । एक ग्वाला आया। साथ में बैल थे। उन्हें वहां चरने के लिए छोड़ वह घर चला गया। उसने लौटकर देखा बैल वहां नहीं है । वह क्रुद्ध हो गया। बैलों को खोजने इधर-उधर घूमने लगा। थोड़ी देर बाद फिर वहीं पहुंचा, जहां महावीर ध्यान कर रहे थे। बैलों को महावीर के आस-पास देखकर वह स्तब्ध रह गया । 'यह श्रमण बैलों को हथियाना चाहता है, इस सन्देह ने ग्वाले का क्रोध प्रज्ज्वलित कर दिया। वह रस्सी को आकाश में उछालता हुआ महावीर पर प्रहार करने को आगे बढ़ा, इतने में नंदिवर्धन वहां आ पहुंचा। उसने ग्वाले को समझा-बुझाकर शांत कर दिया। नंदिवर्धन ने महावीर की सुरक्षा की व्यवस्था करनी चाही। महावीर ने उसे अस्वीकार कर दिया उन्होंने कहा - 'जो अपने आपको असुरक्षित अनुभव करता है, वह अध्यात्म के पथ पर नहीं चल सकता । अध्यात्म के पथ पर चलने वाला अपने आपको सदा सुरक्षित अनुभव करता है । मुझे किसी सुरक्षा की अपेक्षा नहीं है। स्वतंत्रता और स्वावलम्बन ही मेरी सुरक्षा है ।' ऊर्जा का ऊर्ध्वगमन ३ महावीर ध्यान की मुद्रा में खड़े थे । कुछ युवतियों ने आकर सहवास के लिए प्रार्थना की। भगवान् ने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया। युवतियों ने उन्हें अपने मायाजाल में फंसाने की अनेक चेष्टाएं कीं, पर उनकी चैतन्य - केन्द्र की ओर बहने वाली ऊर्जा का एक कण भी काम केन्द्र की ओर प्रवाहित नहीं हुआ । भगवान् के ध्यान की धारा अविच्छिन्न चलती रही। युवतियां जिस दिशा से आई थीं उसी दिशा में लौट गईं । कैवल्य भगवान् महावीर की साधना का मूलमंत्र है - समता । न राग और न द्वेष - चेतना की यह अनुभव - दशा समता हैं । भगवान् ने अनुभव किया, दुःख का मूल बीज है कर्म और कर्म का मूल बीज हैं राग-द्वेष । हिंसा, असत्य, चोरी, अब्रह्मचर्य और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003147
Book TitleSatya ki Khoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size6 MB
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