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आहार और स्वास्थ्य ८५ से अम्लीय पदार्थों का संचय नहीं होता, विष संचित नहीं होता | आदमी स्वस्थ रहता है । इस सहज विधि को छोड़कर मनुष्य दवाओं का सहारा लेता है, परन्तु दवाएं बहुत कार्यकर नहीं होती ।
मोक-प्रतिमा : शोधन की पद्धति
प्राचीन जैन साहित्य में 'मोक-प्रतिमा' का विवरण प्राप्त है । इसका तात्पर्यार्थ है— मूत्र चिकित्सा की पद्धति । यह बीमारी के शोधन की प्रक्रिया है । जितना महत्व आहार का है उतना ही महत्व उत्सर्जन का है । उत्सर्जन का अर्थ केवल मल का उत्सर्जन ही नहीं किन्तु कोशिकाओं में संचित सूक्ष्म मलों का निष्कासन है । यह निष्कासन अनाहार के द्वारा ही संभव है । आहार का विवेक, उत्सर्जन और अनाहार- ये तीनों स्वास्थ्य के मूल साधन हैं । संतुलित भोजन मात्र से स्वास्थ्य ठीक नहीं रह सकता | इसके साथ अनशन की बात को जोड़कर कर ही हम स्वास्थ्य को प्राप्त कर सकते हैं ।
आज के पोषणशास्त्रियों तथा महावीर के स्वास्थ्य सूत्रों-दोनों को सामने रखकर जीवन चर्या चलेगी तो स्वास्थ्य घटित होगा | आहार और स्वास्थ्य को भिन्नार्थक नहीं माना जा सकता, दोनों एकार्थक बन जाते हैं ।
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