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योगासन और स्वास्थ्य
भगवान् महावीर ने तपस्या के बारह प्रकार बतलाए । उनमें एक प्रकार है--- कायक्लेश । कायक्लेश का शब्दार्थ और तात्पर्यार्थ है— कायसिद्धि, काया को साधना । जहां कायसिद्धि का प्रश्न है, वहां आसन की अनिवार्यता
ऐसा माना जाता है कि आसनों का अधिक विस्तार गोरखनाथ ने किया था, किन्तु भगवान् महावीर गोरखनाथ से पूर्व हुए हैं | महावीर ने आसनों का विस्तार से वर्णन किया है। केवल वर्णन ही नहीं किया, स्वयं बहुत प्रयोग किए । उनका एक सूत्र है- श्रमण-निर्ग्रन्थ के लिए पांच स्थान सदा वर्णित, कीर्तित, प्रशस्त और अभ्यनुज्ञात हैं---
० स्थानायतिक ० उत्कटुकासनिक ० प्रतिमास्थायी ० वीरासनिक ० नैषधिक
काय-सिद्धि और स्वास्थ्य
इन पांच स्थानों की पृष्ठभूमि में साधना का दृष्टिकोण है, किन्तु स्वास्थ्य
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