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आहार और स्वास्थ्य ८३
नाभि के आसपास प्राण-ऊर्जा पैदा होती है । उसे हठयोग में “समान प्राण" कहते हैं । नाभि-केन्द्र प्राण ऊर्जा को पैदा करने का केन्द्र है । यह ऊर्जा शरीर के संचलन का मुख्य तत्व है । अधिक भोजन करने वाले में ऊर्जा कम हो जाएगी । अधिक भोजन और कब्ज-दोनों का गठबंधन है | लोगो का यह सामान्य विचार है कि अधिक भोजन करने से कब्ज ठीक होगा किन्तु यह गलत धारणा है । अधिक भोजन कब्ज पैदा करता है | इसका कारण है कि भोजन पचता नहीं, कच्चा रस बनता है । उसका निष्कासन कठिन होता है । उससे अनेक बीमारियां-सुस्ती, मन की उदासी, घबराहट आदि उत्पन्न होती हैं।
भगवान् महावीर ने उस समय की भाषा में बतलाया कि एक स्वस्थ पुरुष का आहार बत्तीस कवल का होता है । इससे एक कवल, दो कवल कम खाना ऊनोदरी है । ऊनोदरी के भी अनेक प्रकार हैं ।
वृत्ति-संक्षेप
तपस्या अथवा स्वास्थ्य का तीसरा साधन है-वृत्ति-संक्षेप । जैन परंपरा में यह प्रवृत्ति बहु-प्रचलित है । द्रव्यों का नाना प्रकार से परिसीमन किया जाता है । आज मैं पांच द्रव्यों से अधिक नहीं लूंगा । आज मैं अमुक-अमुक द्रव्य नहीं खाऊंगा, आज मैं केवल एक ही द्रव्य लूंगा, अमुक घरों के अतिरिक्त कहीं कुछ भी न खाऊंगा-पीऊंगा आदि-आदि । इस प्रकार के वृत्ति-संक्षेप से अनेक बीमारियों से बचाव हो जाता है ।
रस-परित्याग
स्वास्थ्य का चौथा साधन है— रस-परित्याग-रसों का वर्जन । रसों का सेवन प्रतिदिन मत करो, कभी करो, कभी छोड़ो । इस संतुलन से शरीर की पुष्टि बनी रहेगी और विजातीय तत्व का निष्कासन भी सरलता से होता रहेगा। हमारे धर्मसंघ में विगय-वर्जन की व्यवस्था है । अष्टमी, चतुर्दशी तथा अन्यान्य तिथियों को विगय का वर्जन करो, औषधि का सेवन किया हो तो विगयवर्जन करो आदि-आदि । यह रेस-परित्याग की एक विधि है ।
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