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८२ महावीर का स्वास्थ्य-शास्त्र डाक्टर सेल्टन ने आहार-चिकित्सा पर जो कार्य किया है, वह स्वास्थ्य का सिद्धान्त है । उन्होंने कहा-आहार से विष जमा होते हैं । यदि विषों को शरीर से बाहर नहीं निकाला जाएगा तो स्वास्थ्य अस्त-व्यस्त हो जाएगा ।' शरीर के विजातीय पदार्थों के निष्कासन का एकमात्र उपाय है-उपवास । उपवास से पाचनतंत्र को विश्राम मिलता है । जब उसे विश्राम नहीं मिलता तब वह अपना कार्य पूरा नहीं कर पाता । पूरा शरीर उससे प्रभावित होता है । जीवन का आधार है- पाचन-तंत्र | सामान्यतः श्वासन-तंत्र को महत्व दिया जाता है | किन्तु श्वसन-तंत्र की स्वस्थता का हेतु क्या है, इस ओर ध्यान नहीं जाता। पाचन-तंत्र ठीक नहीं है तो श्वास की बीमारी हो जाती है । श्वास को पाचनतंत्र ही प्रभावित करता है । पाचन-तंत्र, आमाशय, पक्वाशय, लीवर, तिल्ली आदि ठीक कार्य करते हैं तो स्वास्थ्य बना रहता है और यदि शरीर के ये अवयव ठीक नहीं हैं तो स्वास्थ्य की कामना निरर्थक है । पेन्क्रीयाज ठीक नहीं है तो स्वास्थ्य नहीं है । एक भाई ने कहा--मेरा छोटा भाई चल बसा । उसे केवल सुगर की बीमारी थी । उसने यह सहज भाव से कहा । वह नहीं समझा कि सुगर की बीमारी सभी बीमारियों की जड़ है । यह निमंत्रण है अन्यान्य बीमारियों को । इससे किडनी कमजोर हो जाती है, सारा शरीर खोखला हो जाता है।
ऊनोदरी
जो उपवास नहीं कर सकते, उनको ऊनोदरी करनी चाहिए । ऊनोदरी का अर्थ है-भूख से कम खाना । अतीत का इतिहास इस बात का साक्ष्य है कि कम राने वाले स्वस्थ रहे हैं, दीर्घायु बने हैं । लूंस-ठूस कर खाने वाले बीमार रहे हैं, अल्पायु में मरे हैं । ऊनोदरी भी उपवास से कम नहीं है । अल्पाहार स्वास्थ्य का बड़ा सूत्र है।
प्राचीन काल में नाश्ते की प्रथा नहीं थी । आज उसका अधिक प्रचलन है । परंतु आज एक आन्दोलन चल रहा है कि नाश्ता मत करो । स्वस्थ रहना है तो नाश्ता छोड़ दो । “ एगभत्तं च भोयणं''-एक वक्त भोजन करो, बीमारियां नहीं होगी । महावीर के कष्ट सहने के पीछे आहार-विवेक प्रमुख था । अल्पाहार से शक्ति का संचय होता है, शक्ति का व्यय कम होता है।
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