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आहार और स्वास्थ्य ८१ ये अम्लता पैदा करने वाले हैं, विष पैदा करने वाले हैं । प्रतिदिन इनका सेवन करने से विष संगृहीत होता है और यह विष रोग का मूल है, जड़ है । कभीकभी इन पदार्थों को छोड़ना भी चाहिए । आज के चिकित्सक औषधि के साथ-साथ यह निर्देश भी देते हैं कि घी, चीनी बन्द करो, दूध अधिक मात्रा में मत लो, प्राणिज चीजें कम लो आदि -आदि । इसका तात्पर्य यही है कि भोजन जितना गरिष्ठ होगा आयु उतनी ही कम होगी और स्वास्थ्य भी बिगडता जाएगा ।
कैसा हो आहार ?
मुनि की आहार चर्या के प्रसंग में एक प्रश्न उठा - क्या मुनि को सर्वथा रूखा आहार ही लेना चाहिए अथवा सर्वथा चिकना आहार ही लेना चाहिए । समाधान में कहा गया कि मुनि को कभी रूखा और कभी चिकना आहार लेना चाहिए । यदि उसे अपनी मेधा से काम लेना है, स्वास्थ्य को ठीक रखना है, मूत्र संस्थान को स्वस्थ रखना है तो चिकना आहार लेना होगा । किन्तु यदि निरंतर स्निग्ध आहार लेता रहे तो अनेक बीमारियां उत्पन्न हो जाएंगी । मानसिक रोग तथा कामुकता की समस्याएं उभरेंगी । यदि केवल रूखा आहार ही निरंतर सेवन किया जाएगा तो स्वास्थ्य बिगडेगा तथा बार-बार प्रश्रवण करना पड़ेगा, मूत्र की बाधा बनी रहेगी, स्वाध्याय आदि में अनेक विघ्न पैदा होंगे । स्निग्ध आहार के निरंतर सेवन से विकृति बढ़ती है तो रूखे आहार के निरंतर सेवन से क्रोध, चिड़चिड़ापन बढ़ेगा । दोनों का संतुलन बनाए रखो - कभी स्निग्ध आहार करो और कभी रूखा आहार लो । इस आशय का प्रतिनिधि शब्द है- अभिक्खणं निव्विगंइगया अ - बार-बार विगय - स्निग्ध आहार का वर्जन करना ।
उपवास
जैन परंपरा सम्मत बारह प्रकार की तपस्याओं में प्रथम चार- अनशन ऊनादेरी, वृत्तिसंक्षेप और रस - परित्याग - ये तपस्याएं भी हैं और स्वास्थ्य के सूत्र भी हैं ।
अनशन का अर्थ केवल उपवास आदि करना ही नहीं है । अमेरिकी
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