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८० महावीर का स्वास्थ्य-शास्त्र
महाशक्ति है अनाहार
भगवान् महावीर ने आहार के विषय में जितना कहा, उससे अधिक अनाहार के विषय में कहा । आहार हमारी शक्ति है तो अनाहार महाशक्ति है । हम देखते हैं, जो व्यक्ति अनशन करते हैं, संथारा करते हैं, यावज्जीवन अन्न-पान का परित्याग करते हैं और ऐसी अवस्था में करते हैं कि. मानो वे इस संसार में १०-२० घंटे के मेहमान हों तथा असाध्य बीमारी की अवस्था में ऐसा करते है । अनशन करने के बाद वे १०-२० दिन जीते हैं और स्वस्थता का अनुभव करते हुए जीते हैं ।
उनकी बीमारी का गायब हो जाना, आंख की ज्योति का पुनः आ जाना, न बोल पाने की स्थिति से छूटकर बोलने लग जाना, शरीर में चमक का प्रार्दुभाव आदि-आदि स्थितियां अनशन में घटित होती हैं । ऐसा इसलिए होता है कि शरीर में जो विजातीय तत्व जमा था, उसका रेचन प्रारंभ हो जाता है | जितना विजातीय तत्व का रेचन होता है, शरीर के अवयवों की शक्ति बढ़ जाती है । शरीरशास्त्र के अनुसार यह माना जाता है कि मनुष्य के फैफड़ों में, हार्ट और किड़नी में तीन सौ वर्षों तक कार्य करने की शक्ति है, क्षमता है । आज भी ये अवयव उतने काल तक कार्य करने में शक्ति-संपन्न है किन्तु इनकी शक्ति का ह्रास का एक प्रमुख कारण बनता है आहार ।
हिताहार : मिताहार
भगवान् महावीर ने आधुनिक शरीरशास्त्री और पोषणशास्त्री की भांति यह विश्लेषण नहीं किया कि शरीर के पोषण के लिए कितना विटामिन, कितना लवण, कितना क्षार चाहिए । किन्तु उन्होंने आहार के विषय में दो महत्वपूर्ण शब्द दिए-हिताहार और मिताहार | जो व्यक्ति हितकर आहार करता है, जो व्यक्ति मितभोजी होता है वह स्वस्थ रहता है | उसकी चिकित्सा के लिए वैद्य की आवश्यकता नहीं होती । वह अपनी चिकित्सा स्वयं कर लेता है । वह स्वयं अपना वैद्य है । यद्यपि आहार विषयक ये दोनों शब्द मुनि के लिए दिए गये हैं, किन्तु ये दोनों प्रत्येक मनुष्य के लिए लागू होते हैं । आज के शरीरशास्त्री भी इस विषय का समर्थन करते हैं । वे कहते हैं-प्रतिदिन व्यक्ति को दूध, दही, घी, मक्खन, मिठाइयां नहीं खानी चाहिए । ये पदार्थ हितकर नहीं हैं।
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