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आहार और स्वास्थ्य ७९
महत्व उत्सर्जन का
स्वास्थ्य का सम्बन्ध केवल संतुलित भोजन और पोषक तत्वों की पूर्ति से ही नहीं है किन्तु उसके साथ जमने वाले विष के निष्कासन से भी है । उत्सर्जन बहुत महत्वपूर्ण है ।
भगवान महावीर ने आहार पर्याप्ति के तीन कार्य बतलाएंग्रहण, परिणमन और उत्सर्जन | आहार का ग्रहण, उसका परिणमन-सात्मीकरण और उत्सर्जन- ये तीन कार्य हैं । भोजन का रस बनता है, रक्त बनता है । यह परिणमन है, सात्मीकरण है | परिणमन के पश्चात् उत्सर्जन होता है | उत्सर्जन का कार्य केवल आँतें ही नहीं करती, शरीर की प्रत्येक कोशिका करती है। यदि शरीर में एकत्रित विषों का समुचित उत्सर्जन नहीं होता है तो स्वास्थ्य की समस्या को सुलझाया नहीं जा सकता ।
संतुलित भोजन की व्याख्या
आधुनिक पोषणशास्त्र के अनुसार जीवन में क्षारीय तत्व और अम्लीय तत्व का समावेश होना चाहिए । अस्सी प्रतिशत क्षारीय तत्व और बीस प्रतिशत अम्लीय तत्व-यह संतुलित भोजन की व्याख्या है । अम्लीय तत्व विष पैदा करता है, वह अम्लीय कणों को छोड़ता है, जिनका शरीर के प्रत्येक भाग में जमाव होता है और वह पोषक तत्वों को प्रभावित करता है । यह जमाव जहरीला बन जाता है । यदि उसका निष्कासन नहीं होता है तो स्वास्थ्य गड़बड़ा जाता है | शरीर संचालन का मुख्य तत्व है— रक्त । उससे सारा तंत्र संचालित होता है । जब रक्त में अम्लीय तत्व अधिक हो जाता है तब वह जहरीला बन जाता है । उस एक के जहरीले बन जाने पर सारा शरीर उससे प्रभावित होता है । अम्लीय तत्व ऋणात्मक शक्ति है । क्षारीय तत्व धनात्मक शक्ति है । दोनों शक्तियां हैं और दोनों जरूरी हैं । शरीर के लिए अम्लीय तत्व की भी जरूरत है और उसका अधिक मात्रा में शरीर में जमाव न हो, उसका उत्सर्जन हो, इसलिए क्षारीय तत्व भी जरूरी है। दोनों का अनुपात ठीक हो, यह अपेक्षित है । यदि अनपात ठीक नहीं है तो उन्हें निकालने के लिए अनशन-आहार-त्याग की आवश्यकता होती है ।
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