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श्वास और स्वास्थ्य ७३
जैसे लेश्या ध्यान में रंगों का ध्यान किया जाता है, वैसे ही श्वास के साथ भी रंगों का ध्यान किया जाता है, स्वाद का भी ध्यान किया जा सकता है। श्वास मीठा भी है, कड़वा भी है, कषैला भी है, तीखा भी है । सभी स्वाद है उसमें । उसमें हल्कापन भी है और भारीपन भी है । वह मृदु भी है और कठोर भी है । उसमें सभी स्पर्श हैं । चिकित्सात्मक दृष्टि से इन सबका विकास किया जाए तो श्वास चिकित्सा की एक स्वतंत्र पद्धति बन सकती है । रंग हमारे शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं । मन की चंचलता, भावों की उद्विग्नता आदि को भी रंगों का ध्यान प्रभावित करता है । व्यक्ति जिस प्रकार के रंगीन श्वास को ग्रहण करता है, वह श्वास हमारे शारीरिक तंत्र, मानसिक तंत्र तथा भाव तंत्र को प्रभावित करेगा । इस दृष्टि से श्वास केवल जीवनदायी ही नहीं है, आरोग्यदायी भी है ।
श्वास और आयुष्य
समवायांग आगम में देवताओं के आयुष्य का वर्णन है । साथ ही साथ उनके श्वासोच्छ्वास लेने के दिनों का भी उल्लेख है । कोई पांच दिन से, कोई दस दिन से, कोई पन्द्रह दिन से या तीस दिन से श्वास लेता है। जिसके आयुष्य की अवधि जितनी लंबी उतनी ही लंबी श्वास की अवधि । या यों कहें कि जितनी श्वास की अवधि लंबी उतना ही आयुष्य लंबा । इसका तात्पर्य है कि दीर्घ आयुष्य का संबंध श्वास से है । श्वास छोटा या असंतुलित तो आयुष्य छोटा, श्वास लंबा और संतुलित तो आयुष्य भी लंबा । यद्यपि आयुष्य का संबंध आयुष्य कर्म के पुद्गलों के साथ है, परंतु उन पुद्गलों को भुगतने की क्रिया श्वास है । पुदगलों को कितने समय में भुगतना, इसका निर्धारण श्वास के द्वारा होता है । जब श्वास का और दीर्घ आयुष्य का संबंध है तो श्वास का संबंध स्वास्थ्य से है, यह स्वयं गम्य है । यदि श्वास उचित नहीं है तो आयु कभी लंबी नहीं हो सकती । श्वास उचित है तो आयु उचित रहेगी । श्वास का और आयुष्य का, श्वास का और स्वास्थ्य का तथा श्वास का और भाव का संबंध है । यह पूरी श्रृंखला है । इसलिए स्वास्थ्य पर विचार करते समय श्वास को छोड़ा नहीं जा सकता ।
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