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७२ महावीर का स्वास्थ्य - शास्त्र
श्वास और स्वास्थ्य ७२
का ग्रहण होता है और वह स्वास्थ्य का घटक तत्व है । अशुद्ध भाव से अशुद्ध श्वास के पुद्गलों का ग्रहण होता है और उससे रोग का प्रादुर्भाव होता है ।
आचार्य मलयगिरी ने स्पष्ट रूप से समझाया है कि जब-जब अनिष्ट पुद्गलों का ग्रहण होता है तब-तब हृदय रोग आदि अनेक भयंकर बीमारियां पैदा होती हैं, मन का उपघात होता है । जब-जब शुभ पुद्गलों का ग्रहण होता है तब-तब प्रसन्नता, प्रफुल्लता विकसित होती है, स्वास्थ्य लाभ होता है ।
रंग और स्वास्थ्य
रंग मनुष्य का जीवन है । रंग के बिना मनुष्य जीवित नहीं रह सकता, स्वस्थ नहीं रह सकता । रंगों की कमी, स्वास्थ्य की कमी । रंगों की अधिकता, स्वास्थ्य की न्यूनता | संतुलित रंग, स्वास्थ्य का लाभ । रंगों का ग्रहण स्वास्थ्य के माध्यम से होता है । शरीर में लाल रंग की कमी होने पर अपच, कब्ज, अनिद्रा आदि बीमारियां पैदा हो जाएंगी । पीले रंग की कमी से पाचन-तंत्र अस्त-व्यस्त हो जाएगा, यकृत् और उदर की नाड़ियों पर असर होगा । हरे रंग की कमी से शरीर से विजातीय पदार्थों का निस्सरण उचित रूप से नहीं होगा । प्रत्येक रंग शरीर पर प्रभाव डालता है । रंगों की कमी भी शरीर को प्रभावित करती है और रंगों की अधिकता भी शरीर को प्रभावित करती है । रश्मि चिकित्सा या सूर्य चिकित्सा में रंगों का संतुलन बनाया जाता है। रंगों के संतुलन के द्वारा ही बीमारियों की चिकित्सा की जाती है । यदि मनोभाव असंतुलित है, अनिद्रा या अतिनिद्रा है, अथवा कोई शारीरिक, मानसिक या भावनात्मक बीमारी है तो रंगीन श्वास के ध्यान का प्रयोग कराया जाता है । इसकी प्रक्रिया है - हम कल्पना करें कि शरीर के चारों ओर पीला, लाल, नारंगी आदि रंग फैले हुए हैं । हम किसी एक रंग की कल्पना करें, वह रंग प्रकट हो जाएगा । हम सोचें कि हमारा श्वास अमुक रंग का हो रहा है, अमुक रंग के परमाणु श्वास में अधिक आ रहे हैं । श्वास लेते ही उस रंग की पूर्ति हो जाएगी ।
इस रंगीन श्वास की प्रक्रिया का आधार है महावीर का लेश्या सिद्धान्त ।
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