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श्वास और स्वास्थ्य ७१ युक्त पुद्गल गृहीत होते हैं । इष्ट वर्ण, गंध, रस और स्पर्श होता है तो आरोग्य रहता है और अनिष्ट, वर्ण, गंध, रस और स्पर्श होता है तो स्वास्थ्य बिगड़ जाता है ।
नाक और श्वास
श्वास पर विचार करते समय हमें नाक पर भी विचार करना होगा । नाक और श्वास का गहरा सम्बन्ध है | शरीरशास्त्र के अनुसार मस्तिष्क का एक भाग है - घ्राण मस्तिष्क । इसका सम्बन्ध बाह्यज्ञान से है । यह मस्तिष्क पशुओं में जितना विकसित है उतना मनुष्यों में नहीं है । उसकी कमी आई है । फिर भी यह प्राण मस्तिष्क बहुत महत्वपूर्ण है । भय, क्रोध, आक्रामक मनोवृत्ति - इन सबके केन्द्र घ्राण मस्तिष्क में हैं । नाक को समझने का अर्थ है— शरीर के अनेक रहस्यों को समझना ।
भगवान् महावीर नासाग्र पर ध्यान करते थे । नासाग्र ध्यान का तात्पर्य बहुत गहरा है । इसका अर्थ है कि नासाग्र पर ध्यान करने वाला अपने प्राण मस्तिष्क पर नियंत्रण कर लेता है, उसका परिष्कार कर लेता है । जो व्यक्ति अभय की साधना करना चाहे, क्रोध को कम करना चाहे, आक्रामक मनोवृत्ति को छोड़ना चाहे, कामवृत्ति पर नियंत्रण करना चाहे, उसके लिए नासाग्र पर ध्यान करना अनिवार्य है । ऐसे नाक का कोई सीधा उपयोग नहीं लगता । परन्तु अध्यात्मिक दृष्टि से नाक और घ्राण मस्तिष्क का बहुत महत्व है । नाक और श्वास का सम्बन्ध है । श्वास संतुलित होता है तो घ्राण मस्तिष्क का परिष्कार होता है ।
श्वास अस्त-व्यस्त होता है तो घ्राण मस्तिष्क उत्तेजित हो जाता है । इसका हम सब प्रत्यक्ष अनुभव कर सकते है । क्रोध आते ही श्वास की संख्या बढ़ जाती है । अहंकार और माया आते ही श्वास की संख्या बढ़ जाती है । भावों के तारतम्य के साथ श्वास का तारतम्य होता है । भाव उत्तेजनापूर्ण है तो श्वास उद्विग्न हो जाएगा । भाव शांत है तो श्वास शांत रहेगा । भाव और श्वास का स्पष्ट सम्बन्ध दृष्टिगोचर होता है । भाव, श्वास और स्वास्थ्य, तीनों का गहरा सम्बन्थ है । इनका युगपत् अध्ययन किए बिना स्वास्थ्य की समस्या को नहीं सुलझाया जा सकता । शुद्ध भाव से शुद्ध श्वास के पुद्गलों
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