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श्वास और स्वास्थ्य
शरार पाद्गालक है--- 'वर्ण गंधरसस्पर्शवान् पुद्गलः'- जिसमें वर्ण है, गंध है, रस है और स्पर्श है वह पुद्गल है, वह पौद्गलिक वस्तु है । श्वास में ये चारों लक्षण पाए जाते हैं, इसलिए श्वास पौद्गलिक है ।
गौतम ने भगवान् महावीर से पूछा-'भंते ! जीव श्वास-प्रश्वास लेते हैं ?' यदि लेते हैं तो कैसे ? भगवान् ने इसका उत्तर चार दृष्टियों से दियाद्रव्य दृष्टि से, क्षेत्र दृष्टि से, कालदृष्टि से तथा भावदृष्टि से । भगवान् ने भावदृष्टि से समाधान देते हुए कहा- ‘भावओ वण्णमंताई, गंधमंताई, रसमंताई फासमंताई आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति वा........ (भग २/३,४.......)
प्रत्येक जीव श्वास प्रश्वास लेता है । उसके श्वसन-पुदगल वर्ण, गंध, रस और स्पर्शयुक्त होते हैं । जैसे शरीर में वर्ण, गंध, रस और स्पर्श हैं वैसे ही श्वास में भी ये चारों हैं । प्राणी केवल श्वास नहीं लेता, वह वर्ण, गंध, रस और स्पर्श युक्त पुद्गल ग्रहण करता है । पांच वर्ण, दो गंध, पांच रस
और चार या आठ स्पर्श श्वास में विद्यमान हैं । जब मनुष्य की भावधारा शुद्ध होती है तब इष्ट वर्ण, गंध, रस और स्पर्श युक्त श्वास गृहीत होता है और जब भावधारा अशुद्ध होती है तब अनिष्ट वर्ण, गंध, रस और स्पर्श
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