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________________ जीवन शैली और स्वास्थ्य ६७ कार्यकारी होते हैं स्नायुगत संस्कार आगमों में एक महत्वूर्ण शब्द है भावियप्पा-भावितात्मा । भावितात्मा वह होता है, जिसने अपने मन को भावित, वासित कर लिया है | मस्तिष्क और स्नायु-संस्थान को निरपेक्ष होकर अपने अनुसार बना लिया है । स्नायुगत संस्कार बहुत कार्यकारी होते हैं । कुछ क्रियाएं शारीरिक और स्नायविक अभ्यास के कारण भी चलती हैं | जिस घर में रहते हैं और प्रतिदिन जिन सीढ़ियों पर आरोहण-अवरोहण करते हैं, वहां प्रतिदिन जागरूक रहने की आवश्यकता नहीं होती । सीढ़ियों पर पैर अपने आप उठेंगे और आगे बढ़ते जाएंगे । सीढ़ियों की ऊँचाई की ओर प्रतिपल ध्यान रखने की आवश्यकता नहीं रहेगी । यह सारा स्नायविक अभ्यास के कारण होता है । यदि अन्य सीढ़ियों पर चढ़ना पड़े तो वहां अत्यन्त जागरूक रहना होता है । सीढ़ियों की ऊँचाई को ध्यान में रखकर पैर रखना होता है । हम स्नायु-संस्थान को जो अभ्यास देते हैं वह वैसा ही करता रहता है । कुछ व्यक्तियों को विचित्र रूप में स्नायविक अभ्यास हो जाता है | कुछ की अंगुलियां हिलती रहती हैं । कागज पेन्सिल न होने पर भी लिखने की मुद्रा बनी रहती है । एक व्यक्ति को ऐसा स्नायविक अभ्यास था कि वह कहीं भी बैठा रहता तो निरन्तर लकीरें खींचता रहता। एक बार वह अपने मित्रों के साथ नौका-विहार में गया । वहां भी वह हाथ बाहर निकालकर अंगुली से पानी पर लकीरें खींचने लगा । लोगों ने उसके स्नायविक अभ्यास के लिए आश्चर्य व्यक्त किया । मस्तिष्कीय नियंत्रण का सूत्र स्नायु-संस्थान को किस प्रकार का अभ्यास देना है, यह व्यक्ति पर निर्भर करता है । अच्छा या बुरा जैसा भी अभ्यास दिया जाएगा, स्नायु संस्थान वैसा करता रहेगा | साधना का प्रयोजन यही है कि जो दिया हुआ अभ्यास हितकर नहीं है, उसे बदलकर दूसरा हितकारी अभ्यास किया जाए। जो अभ्यास स्वास्थ्य के लिए बाधक है, उससे मुक्त होकर स्वास्थ्य-प्रदायी अभ्यास दिया जाए । अनुप्रेक्षा और भावना के द्वारा ऐसा घटित किया जा सकता है । एक व्यक्ति पत्नी वियोग से अत्यन्त दुःखी था । वियोग में दुःख का संवेदन करना उसका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003146
Book TitleMahavira ka Swasthyashastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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