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६६ महावीर का स्वास्थ्य - शास्त्र
है और जहां रोग है, वहां विषमता है। अहंकार, कपट, लोभ- ये सब रोग के उत्पादक हैं । माधव निदान ग्रन्थ में हृदय को दुर्बल बनाने वाले कारणों में एक कारण लोभ को माना है । जिसमें लोभ की प्रवृत्ति अधिक होगी, उसका हृदय दुर्बल होगा। सभी संवेग स्वास्थ्य को अस्त-व्यस्त कर देते हैं ।
हमारी जीवन शैली उपशम प्रधान, समता प्रधान तथा संतुलन प्रधान होनी चाहिए । इस प्रकार की जीवन शैली से शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रोगों से बचा जा सकता है । जीवन शैली का मुख्य तत्व हैसंयम । यह तत्व सभी तत्वों के साथ अनुस्यूत है । जिस जीवन शैली में यह तत्व होता है वह जीवन सुखी और आनन्दप्रद होता है ।
जरूरी है प्रशिक्षण
प्रेक्षाध्यान पद्धति में अनुप्रेक्षा तथा कुछ अंशों में सम्मोहन का प्रयोग कराया जाता है । यह इसलिए कि मस्तिष्कीय नियंत्रण तथा भावनात्मक नियंत्रण सध सके । अनुप्रेक्षा में एक निश्चित शब्दावली को बार-बार दोहराया जाता है । अर्थात् इस प्रक्रिया से हम मस्तिष्क को सुझाव देते हैं । यह मस्तिष्क को प्रभावित करता है । मस्तिष्क को प्रभावित करने वाला मुख्य तथ्य हैभावना । भावना का अर्थ है— बार-बार अभ्यास । जब मस्तिष्क में एक ही भावना बार-बार उभरती है तो वह मस्तिष्क प्रशिक्षित हो जाता है । उसके प्रशिक्षण के बिना संयम की बात सधती नहीं । मस्तिष्क सुझाव को स्वीकार करता है और इस स्वीकृति का कर्मशास्त्रीय कारण है लेश्या । यह प्रवाह भीतर विद्यमान है । यही हमारे व्यवहार को प्रभावित करता है । शरीर - शास्त्र की दृष्टि से माना जाता है कि ग्रन्थियों का स्राव संतुलित होता है तब स्वास्थ्य बना रहता है और जब यह स्राव असंतुलित हो जाता है तब अस्वास्थ्य उभर आता है । इसी प्रकार हमारा भीतरी प्रवाह लेश्या भी हमारे स्वास्थ्य तथा अस्वास्थ्य के लिए जिम्मेवार है । हम पवित्र लेश्या या भावना का प्रयोग करें, मस्तिष्क उससे प्रभावित होगा ।
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