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जीवन शैली और स्वास्थ्य ६५
संयम है। संयम अर्थात् मस्तिष्क पर नियंत्रण । जिसने मस्तिष्क पर नियंत्रण करना सीखा है, वह बहुत स्वस्थ रह सकता है ।
क्रोध के संवेग के प्रबल होने पर आदमी बीमार हो जाता है । इसका कारण है— मस्तिष्क में तनाव । मस्तिष्क में तनाव आते ही स्नायु संस्थान दुर्बल हो जाता है । जिसका स्नायु संस्थान दुर्बल होता है उस पर रोग का आक्रमण होता रहता है । आयुर्वेद मानता है कि क्रोध से पित्त का प्रकोप बढ़ता है । उससे एसीडीटी बढ़ती है, अल्सर हो जाता है ।
स्वास्थ्य और मस्तिष्क
स्वास्थ्य और मस्तिष्क- दोनों में गहरा सम्बन्ध है । जो व्यक्ति मस्तिष्क पर नियंत्रण करना नहीं जानता, नियंत्रण की विधियों को नहीं जानता, वह शारीरिक, मानसिक और भवानात्मक दृष्टि से भी स्वस्थ रह नहीं सकता । आगंतुक बीमारियों पर उसका कंट्रोल न भी हो, परन्तु बड़ी-बड़ी जो बीमारियां हैं, उनका सम्बन्ध संयम और असंयम से बहुत है | शरीरशास्त्र में मस्तिष्क का गहरा अध्ययन हुआ है । उसमें अल्फा और थेटा - इन तरंगों का अध्ययन हुआ है । अल्फा से मस्तिष्क का तनाव कम होता है । इसका तात्पर्य है कि ग्रन्थियों का स्राव संतुलित होता है । जब हमारी अन्तःस्रावी ग्रन्थियों का स्राव संतुलित होने लगता है तब मनुष्य स्वस्थ रहता है ।
आरोग्य है समता
हम अध्यात्म के इन तत्वों पर विचार करें और जीवन शैली में इनका समावेश करें । समता अध्यात्म का तत्व है । समता का अर्थ है— समभाव, कहीं झुकाव नहीं, कहीं विषमता नहीं । न चिन्तन का वैषम्य, न कार्य का वैषम्य । आयुर्वेद का सूत्र है - 'दोषवैषम्यं रोगः दोषसाम्यं आरोग्यम् ।' दोषों की विषमता रोग है और दोषों का साम्य आरोग्य है । जब वात पित्त, और कफ विषम हो जाते हैं तब रोग उत्पन्न होता है और जब ये तीनों दोष सम अवस्थाओं में रहते हैं तब स्वास्थ्य होता है । मानसिक समता आरोग्य है । अतः समता और स्वास्थ्य को पर्यायवाची मान सकते हैं। जहां समता है वहां स्वास्थ्य है और जहां स्वास्थ्य है वहां समता है । जहां विषमता है वहां रोग
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