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कर्मवाद और स्वास्थ्य ५५ ही कर्म अपना फल देता है । माध्यम के बिना कर्म फल नहीं दे सकता।
___असात वेदनीय कर्म का जब विपाक होता है, तब सबसे पहले कर्मशरीर की ऊर्जा बाहर निकलती है । वह ऊर्जा तैजस शरीर की ऊर्जा को अस्त-व्यस्त कर देती है । कर्मशरीर की ऊर्जा शरीर की ऊर्जा को, जैविक ऊर्जा को विपर्यस्त कर देती है । उससे हमारा नाड़ी-तंत्र प्रभावित होता है। उससे ग्रन्थि तंत्र तथा शरीर की सारी क्रियायें प्रभावित होती हैं और रोग का उदय हो जाता है । असात वेदनीय कर्म अपना काम कर लेता है । जब किसी कर्म का विपाक होना होता है तब सबसे पहले पूर्व तैयारी होती है। वह पूर्व तैयारी शरीर के माध्यम से होती है ।
करण चार हैं-काय करण, मनः करण, वाग् करण और कर्म करण । भगवती, सूत्र का एक प्रसंग है । गौतम ने भगवान महावीर से पूछा- 'भंते ! प्राणी सात वेदनीय और असात वेदनीय कर्म का अनुभव कैसे करता है ?' भगवान ने कहा- 'सात या असात वेदनीय कर्म का अनुभव करने के लिए ये चार करण माध्यम बनते हैं ।' मन एक करण है । इसके द्वारा सात-असात का अनुभव किया जाता है । इसी प्रकार शरीर के द्वारा, मस्तिष्क के द्वारा सात-असात का वेदन किया जाता है ।
संदर्भ असात वेदनीय कर्म का
दो प्रकार की बीमारियां हैं (१) आगन्तुक और (२) कर्म विपाकज | सर्दी या गर्मी का मौसम आया । इस काल में अनेक मौसमी बीमारियां होती हैं । दुर्घटना हुई औरआदमी चोटग्रस्त हो गया । यह स्थिति असात वेदनीय कर्म को उदित करके आती है । सात घेदनीय कर्म का उदय नहीं हो रहा है । असात वेदनीय कर्म ने असात वेदना को पहले ही विपाक में ला दिया । यह एक प्रक्रिया है । यह आगन्तुक रोग के नाम से जानी जाती है । अब वह चाहे आयुर्वेद की भाषा में वात आदि से उत्पन्न है अथवा मेडिकल साइन्स की भाषा में वाइरस आदि से उत्पन्न रोग है । वह भी आगन्तुक रोग है। वह असात वेदनीय कर्म को खींच कर उदय में ले आता है । एक आदमी सुख का संवेदन कर रहा है, कोई समस्या सामने नहीं है । आदमी बैठा है और अकस्मात् एक गाड़ी आती है और उससे टकरा जाती है । वह आगन्तुक
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