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५४ महावीर का स्वास्थ्य-शास्त्र हमें इससे आगे जाना होगा । सुख-दुःख का अनुभव कैसे होता है और किससे होता है, यह जानना आवश्यक है । घटना घटना होती है । वह न सुख देती है और न दुःख देती है । जब हमारी चेतना उस घटना से जुड़ती है तब सुख-दुःख का अनुभव होता है | केवल घटना से कोई सुख या दुःख का अनुभव नहीं होता | यदि घटना से सुख या दुःख का अनुभव होता तो बड़ा ऑपरेशन हो ही नहीं पाता। जब मेजर ऑपरेशन होता है तब रोगी को अनेसथेसिया सुंघाई जाती है अथवा शरीर के रोगग्रस्त अवयव को शून्य करने का अन्य प्रयोग किया जाता है | इससे कष्ट के संवेदन मस्तिष्क तक नहीं पहुंच पाते । उनका रास्ता रोक दिया जाता है। ऐसी स्थिति में कष्ट का अनुभव नहीं होता । इससे स्पष्ट है कि हमें सुख या दुःख का अनुभव किसी घटना विशेष से नहीं होता, किन्तु जब हमारी मस्तिष्कीय चेतना उससे जुड़ती है तब हमें सुख या दुःख का अनुभव होता है ।
शरीर सुख-दुःख के अनुभव का साधन मात्र है किन्तु जो सुख-दुःख का अनुभव करती है वह है हमारी चेतना । हमें उसे समझना होगा | जो चेतना सुख का अनुभव करती है, दुःख का संवेदन करती है, वह किससे प्रभावित होकर करती है, यह हमें समझना है | इस समस्या पर चिन्तन करते समय कर्म हमारे सामने आता है | कर्म आठ हैं | उनमें एक है वेदनीय कर्म । उसका कार्य है चेतना को प्रभावित करना । उससे सुख का संवेदन होता है, दुःख का संवेदन होता है । प्रियता और अनुकूलता की स्थिति में सुख का संवेदन होता है और अप्रियता तथा प्रतिकूलता की स्थिति में दुःख का संवेदन होता है । यह वेदनीय कर्म के प्रभाव से होता है। इस संवेदन के लिए, कर्म विपाक के लिए सामग्री का निर्माण होता है | इसे नो-कर्म कहते हैं | कर्म
और नो-कर्म भिन्न-भिन्न हैं । नो-कर्म कर्म की सहायक सामग्री है। यह रोग का कारण बनता है । जब असात वेदनीय का संवेदन होता है, तब शरीर और मन में रोग की स्थिति पैदा हो जाती है । तब ही असात वेदनीय कर्म अपना फल दे सकता, संवेदन करा सकता ।
माध्यम सापेक्ष है विपाक ___ कर्म का विपाक माध्यम सापेक्ष होता है । हम उदाहरण के द्वारा इसे समझें कि किसी कर्म का विपाक होता है मतिभ्रंश । इस स्थिति में मति और बुद्धि भी विपरीत हो जाती है । मति, बुद्धि और भावना का विपर्यय करके
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