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५२. महावीर का स्वास्थ्य-शास्त्र
कुछ प्रयल हो रहा है, यंत्र भी विकसित हुए हैं जिनसे पता लग जाता है कि आभामंडल का रंग कैसा है | इस आधार पर बीमारी के मूल तक पहुंचने का भी पता लग जाएगा।
समग्रता का दृष्टिकोण
स्वास्थ्य के लिए जिन तीन सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया गया, वे बहुत महत्वपूर्ण हैं
० रोगी अवयव विशेष नहीं, पूरा शरीर बनता है । ० रोगी ही रोग से ग्रस्त होता है, अरोगी कभी रोग से ग्रस्त नहीं होता। ० रोग सर्वात्मना होता है, आंशिक रूप में नहीं । .
इन तीनों सिद्धान्तों की अनेकान्त के आधार पर मीमांसा करें तो रोगी और रोग को समझने में बहुत सुविधा होगी । यदि रोगी को नहीं पकड़ पाएंगे तो रोग की चिकित्सा बहुत जटिल हो जाएगी । हमारे एक मुनि जयपुर के सवाई मानसिंह हास्पिटल में थे । वरिष्ठ चिकित्सक ने उनसे कहा- 'महाराज ! ये जो जले हुए लोग आते हैं, उनकी चिकित्सा करना हमारे लिए बहुत कठिन हो जाता है, क्योंकि वे जीवन से निराश हो जाते हैं । जो जीवन से निराश हो गया, जिजीविषा नहीं रही, उसे कैसे बचा पाएंगे ? इसलिए आप एक काम करें, किसी प्रकार उनका आत्मबल बढ़ाएं | दवा हम दें और आत्मबल आप दें तो इनका कल्याण हो सकता है ।' ।
यह समग्रता का दृष्टिकोण है । यदि अनेकान्त का यह दृष्टिकोण चिकित्सा के क्षेत्र में व्यापक हो जाए, लागू हो जाए तो पूरी मानवजाति को एक नया अवदान दे सकता है।
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