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रुग्ण कौन ? ५१ की व्यवस्था है । एक आदमी रागा बना, सिर का दद हुआ । जिस निमित्त से दर्द हुआ, उसे दर्द का ज्यादा हिस्सा मिल गया । किन्तु दर्द केवल वहीं नहीं हुआ, पूरे शरीर में हुआ । यह संभव है कि मेरुदण्ड या अन्य स्थान पर हम अनुभव न कर सकें, किन्तु हमारे पास कोई सूक्ष्म यंत्र हो तो पता लगेगा- केवल सिर में ही दर्द नहीं है | उस स्थान को ज्यादा हिस्सा मिला इसलिए वहां दर्द ज्यादा हो गया ।
इस सारी चर्चा को ध्यान में रख कर अगर हम स्वास्थ्य की मीमांसा करें तो हमारे सामने कुछ नए निष्कर्ष आएंगे । यदि आरोग्य का विकास करना है तो केवल शरीर पर ध्यान मत दो, मन पर भी ध्यान दो, भावना पर भी ध्यान दो। मन और भावना का संचालन करने वाला मस्तिष्क है, उस पर भी ध्यान दो । यदि हम ऐसा कर पाए तो महावीर की बात पूरी समझ में आएगी ।
आभामंडल को पहचानें
पूछा गया—'भंते ! मन की एकाग्रता से क्या होता है ?' महावीर ने कहा—'मन की एकाग्रता से चित्त का निरोध होता है ।' मन को एकाग्र करो, चित्त का निरोध होगा । चित्त की जो वृत्तियां उभरती हैं, उन वृत्तियों में पवित्रता
आएगी। यह जरूरी है कि भीतर से जो आने वाला है, उस पर ध्यान दें। हम अधिकांशतः चिकित्सा के क्षेत्र में बाह्य हेतुओं पर ज्यादा ध्यान देते हैं। बाहय और अंतरंग दोनों हेतु होते हैं | बीमारी का बाहरी हेतु हमारे सामने स्पष्ट है । इसके साथ अंतरंग हेतु पर भी ध्यान दें । यदि इस पर समग्रता से ध्यान दिया जाए, मन से भी आगे भाव की विशुद्धि और पवित्रता तक पहुंच जाएं तो आरोग्य-शास्त्र को एक नई उपलब्धि हासिल हो सकती है, चिकित्सा के क्षेत्र में एक अभिनव विकास हो सकता है । चिकित्सक ई. सी. जी. करते हैं । उसमें तरंगों का मापन होता है । ई. सी. जी. में चाहे हृदय का मापन करें, चाहे मस्तिष्क का मापन करें । अल्फा तरंग है तो समझ लेते हैं कि बहुत अच्छा चल रहा है | बीटा-थीटा के अलग-अलग निष्कर्ष हैं । जैसे हम मस्तिष्कीय तरंगों का मापन करते हैं, वैसे ही भाव का मापन हो सकता है आभामंडलीय उपकरणों के द्वारा | आभामंडल को पकड़ने के लिए
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