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रुग्ण कौन ? ४७ कराई और दवाई लेते-लेते थक गया । वह कहता है-, अब मैं दवा नहीं लूंगा । डाक्टर कहता है, तुम्हारे कोई बीमारी नहीं है । उस स्थिति में यदि वह मानसिक चिकित्सक का परामर्श लेता है तो लाभ हो सकता है । उससे भी आगे भावनात्मक चिकित्सा की पद्धति में चला जाए तो उसको समाधान मिल जाए ।
इस सारी चर्चा में दो बिन्दु बन जाते हैं एक समग्र चिकित्सा की पद्धति और दूसरी विभक्त चिकित्सा की पद्धति । कहीं पर खण्डित चिकित्सा की पद्धति का भी उपयोग होता है ।
दुःख का पांचवां प्रकार
आचार्यों ने दुःख के चार प्रकार बतलाए सहज दुःख, शारीरिक दुःख, मानसिक दुःख और आगन्तुक दुःख । अकस्मात् दुर्घटना हो गई, एक्सीडेंट हो गया, यह आगन्तुक दुःख है । किसी ने पत्थर मारा, चोट लग गई, यह आगन्तुक रोग है । इसका न शरीर से संबंध है और न मन से संबंध है। यह आगन्तुक दुःख है । एक होता है सहज दुःख । भूख और प्यास का लगना एक पीड़ा है । संस्कृत के काव्यकारों ने कहा- हुज्जठराग्निजा पीड़ा- जठराग्नि से पैदा होने वाली पीड़ा है भूख ।
शरीर में उत्पन्न होने वाले रोग शारीरिक दुःख हैं । मन पर आघात लगने से जो दुःख होता है, वह मानसिक दुःख है | मन पर अकस्मात् चोट लगती है, व्यक्ति दुःखी बन जाता है । दुःख का पांचवां प्रकार हो सकता है—भावनात्मक दुःख । वह दुःख, जिसका मन से कोई संबंध नहीं है ।
सामान्यतः यह नियम भी है और यह माना भी जाता है कि हमारे पूरे शरीर पर नियंत्रण है मस्तिष्क का | प्रश्न होता है—फिर मस्तिष्क पर किसका नियंत्रण है ? कहा जाता है-मस्तिष्क पर मन का नियंत्रण है । यह बात सही नहीं लगती | मन मस्तिष्क पर नियंत्रण नहीं कर सकता । मन पर नियंत्रण किसका है ? कहा जाता है-भाव का | भाव का मस्तिष्क से, हाइपोथेलेमस से बहुत गहरा संबंध है । हाइपोथेलेमस बहुत संवेदनशील होता है । वह भावनाओं को पैदा करता है। वस्तुतः मस्तिष्क पर मन का भी नियंत्रण नहीं है, भाव का भी नियंत्रण नहीं है । अनेकान्त की दृष्टि से फलित होता है—मस्तिष्क
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