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४६ महावीर का स्वास्थ्य-शास्त्र
देखो. केवल किसी अवयव विशेष के दर्द को मत देखो । यह देखो कि उसके पीछे क्या है | इस स्थिति में दो रूप हमारे सामने आते हैं । पहला रूप यह है कि रोगी को किस प्रकार का रोग है । दूसरा रूप यह है कि किस प्रकार के रोगी को कौन-सा रोग है ? दोनों में बहुत अन्तर आ गया । रोगी के कौन-सा रोग ? इस भाषा में हम रोग को देखते हैं, रोगी को बिल्कुल गौण कर देते हैं । जहां हम देखते हैं कि किस प्रकार के रोगी को कौन-सा रोग है, वहां रोगी सामने आता है, रोग प्रमुख नहीं रहता । अनेकान्त का सिद्धान्त है- जहां एक प्रधान होता है, दूसरा गौण हो जाता है । जहां रोग को प्रधान करते हैं, वहां रोगी गौण हो जाता है । जहां रोगी को प्रधान करते हैं, वहां रोग गौण हो जाता है । जहां अवयवी को प्रधान करते हैं, वहां अवयव गौण हो जाता है और जहां अवयव प्रधान होता है, वहां अवयवी गौण हो जाता है । ये दोनों पहलू हमारे सामने हैं ।
शरीर से भी आगे देखें
प्रश्न है— क्या हम शरीर को ही देखें ? अथवा अवयवी को ही देखें ? यदि महावीर के दृष्टिकोण को समझना है तो इतने से ही काम नहीं चलेगा, इससे और आगे जाना होगा । शरीर को देखो तो शरीर के साथ जो विद्युत्शरीर जुड़ा हुआ है, जो तैजस शरीर है, उसे भी देखो । प्राणशक्ति कैसी है ? तैजस शरीर कितना शक्तिशाली है ? उससे भी आगे यह देखो- सूक्ष्मशरीर कैसा है ? कर्म का उदय कैसा है ? स्थूल अवयव, स्थूल शरीर, सूक्ष्मशरीर और सूक्ष्मतम शरीर-इन सबको देखो । इनके साथ मन को देखो, भाव को देखो, चित्त को देखो । चित्त को देखकर तुम सही निदान कर पाओगे, सही चिकित्सा कर पाओगे। इन सबको अलग-अलग बांट दिया जाए तो सही बात प्राप्त नहीं होगी। यद्यपि विशेषज्ञता की दृष्टि से बांटा जाता है, विभक्त किया जाता है । एक डॉक्टर सर्जन है और एक डॉक्टर फिजीशियन है । एक चीड़फाड़ करता है, आप्रेशन करता है और दूसरा सामान्य चिकित्सा करता है । सर्जरी का विभाग अलग है और सामान्य चिकित्सा का विभाग अलग है । इन विभागों की उपयोगिता भी है । किन्तु समग्रता की दृष्टि से देखें तो सब विभक्त नहीं हो सकते । एक व्यक्ति ने निदान कराया, चिकित्सा
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