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रुग्ण कौन ४५
हमारा सारा शरीर परिपूर्ण है | हम किसी अवयव को बांटकर नहीं देख सकते । पूरा शरीर रोगी बनता है । बहुत लम्बी चर्चा भगवान् महावीर ने प्रस्तुत की। एक परमाणु दूसरे परमाणु का स्पर्श करता है तो वह किस प्रकार करता है ? क्या एक परमाणु दूसरे परमाणु का देशतः स्पर्श करता है ? या सर्वात्मना स्पर्श करता है ? उत्तर मिला सर्वात्मना स्पर्श करता है, देश का स्पर्श नहीं करता । इस प्रकार के अनेक प्रश्न हैं, जिनके उत्तर में भगवान् महावीर ने कहा-रोग होता है, वह समग्र शरीर को होता है । वह एक अवयव को नहीं छूता, पूरे शरीर को छूता है । वह अभिव्यक्त एक अवयव पर होता है । घुटने का दर्द है या सिर का दर्द, किन्तु वह केवल घुटने या सिर का रोग नहीं हो सकता । पूरे शरीर पर वह रोग हुआ है ।
दुःखी कौन ?
इस बारे में तीसरा सिद्धान्त है । महावीर से पूछा गया—दुःखी दुःख से स्पृष्ट होता है या अदुःखी दुःख से स्पृष्ट होता है ? महाबीर ने कहा-जो दुःखी है वह दुःख से स्पृष्ट होता है | जो दुःखी नहीं है, वह कभी दुःख से स्पृष्ट नहीं होता । इस सूत्र को मेडिकल साइंस की भाषा में या वर्तमान रोग पद्धति की भाषा में इस प्रकार कहा जा सकता है जिसकी रोग प्रतिरोधक शक्ति प्रबल है, वह दुःख से पीड़ित नहीं होता | जिसकी रोग निरोधक शक्ति कम हो गई, जिसका रेजिस्टेंस पावर कम हो गया, इम्युनिटी सिस्टम कमजोर हो गया, वह रोग से पीड़ित होता है । जिसकी रोग प्रतिरोधक शक्ति विशिष्ट और इम्युनिटी सिस्टम शक्तिशाली है, उसके चारों ओर कीटाणु, जीवाणु चक्कर लगाते हैं, पर वह रोग से स्पृष्ट नहीं होता ।
कौन सा व्यक्ति : कौन सा रोग
इन तीन दृष्टिकोणों से हम महावीर के दृष्टिकोण को समझने का प्रयत्न करें। अनेकान्त का सिद्धान्त है—अवयव को अवयवी से पृथक् मत मानो । अगर पृथक् मानोगे तो अलग इकाई बन जाएगी । कोई भी अवयव स्वतंत्र इकाई नहीं है । अवयव और अवयवी दोनों जुड़े हुए हैं । रोग की मीमांसा करते समय केवल घुटने के दर्द को मत देखो, केवल सिर के दर्द को मत
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