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________________ रुग्ण कौन? जीवन की दो प्रमुख घटनाएं हैं- सुख और दुःख । सुख के साथ आरोग्य का गहरा संबंध है । सुख के अनेक प्रकार बतलाए गए, उनमें एक प्रकार है--आरोग्य । दुःख के भी अनेक प्रकार बतलाए गए । उनमें एक प्रकार है रोग । आरोग्य सुख है और रोग दुःख है । रोग दुःख है, इसलिए कोई रोगी बनना नहीं चाहता। प्रश्न है— व्यक्ति रोगी बनना नहीं चाहता, फिर बनता क्यों है ? कौन-सा अवयव रोगी बनता है ? हमारे सामने विमर्शनीय विषय यह है-क्या हम अवयव और अवयवी को पृथक मानें । इन्हें सर्वथा अलगअलग मानें ? रुग्ण कौन है ? अंग है या अंगी ? एकान्त दृष्टि से विचार करने पर यह प्रश्न समाहित नहीं होता । अनेकान्त की दृष्टि से अवयव और अवयवी को पृथक् नहीं किया जा सकता, एक भी नहीं माना जा सकता। रोगी बनता है पूरा शरीर भगवती सूत्र का प्रसंग है महावीर ने गौतम से पूछा- यह जो गाड़ी का पहिया है, यह पूर्ण है अथवा खण्डित है ? यह खण्ड छत्र है या पूरा छत्र है ?' गौतम ने कहा- 'भंते ! जो खण्ड है, वह चक्का नहीं है । जो खण्ड है, वह छत्र नहीं है । जब वह पूर्ण बन जाता है, तब वह चक्र और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003146
Book TitleMahavira ka Swasthyashastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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