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पर्याप्ति और स्वास्थ्य ४३ दो, जिससे जीवनी-शक्ति कम हो जाए । श्वास-संयम आवेश नियमन का अचूक प्रयोग है।
भाषा का भी संयम करो । दिन भर मत बोलो । मन का संयम करो । ज्यादा मत सोचो | ज्यादा सोचोगे तो मनः-पर्याप्ति भी परेशान हो जाएगी। व्यक्ति बहुत ज्यादा चिन्तन करता है तो मन का तंत्र गड़बड़ा जाता है । ज्यादा सोचने वाला, रात-दिन सोचने वाला, मन को विश्राम न देने वाला मृत्यु की दहलीज पर अपना पैर रख देता है । स्वास्थ्य के लिए जरूरी है कि मनः पर्याप्ति को व्यवस्थित करो, मन का संयम करो ।
। भगवान् महावीर ने अनेक प्रकार के संयम बतलाए, उनमें ये छह प्रकार के संयम स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण हैं-आहार का संयम, शरीर का संयम, इन्द्रिय का संयम, श्वास का संयम, भाषा का संयम और मन का संयम । जो व्यक्ति इनका संयम करता है, इन पर्याप्तियों की व्यवस्था में हस्तक्षेप नहीं करता, उन्हें अपना काम अपने ढंग से करने देता है, उस व्यक्ति का स्वास्थ्य बहुत अच्छा रहता है । हम स्वास्थ्य के सूत्रों पर विचार करते समय इन छह पर्याप्तियों को न भूलें। इनको छोड़कर हम स्वास्थ्य पर विचार करेंगे
और स्वस्थ रहने का प्रयत्न करेंगे तो शायद सफल नहीं होंगे । जब हम इन छह पर्याप्तियों में ज्यादा हस्तक्षेप करते हैं तब एक प्रदूषण पैदा होता है, बीमारी का खतरा बढ़ जाता है । स्वास्थ्य के प्रति जागरूक रहने वाला व्यक्ति पर्याप्तिजीवनी, शक्ति की सुरक्षा और संवर्द्धन का प्रयत्न करता है इसीलिए स्वास्थ्य की कुंजी उसके हाथ में आ जाती है |
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