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४० महावीर का स्वास्थ्य-शास्त्र
सम्बन्ध है अपान के साथ | कहा गया-अपान की शुद्धि स्वास्थ्य हैअपानशुद्धिः स्वास्थ्यम् । यदि पार्थिव परमाणुओं पर नियंत्रण करना है और उनको सम्यक् रखना है, तो हमें इन्द्रिय पर भी विचार करना होगा । पांच इन्द्रियों का कार्य क्या है ? आंख का काम देखना है, कान का काम सुनना है, नाक का काम गन्ध लेना है, यह सर्वमान्य है । किन्तु शरीर रचना की दृष्टि से और पर्याप्ति की दृष्टि से इनके कार्य बहुत व्यापक हैं । जो हमारा शक्तिकेन्द्र है, जिसको मूलाधार कहते हैं, जो टेरेनियम चक्र है, उस पर कंट्रोल करना है, उसको स्वस्थ रखना है । जब उस पर ध्यान करते हैं तब शक्ति केन्द्र के स्नायु ऊपर उठने लग जाते हैं, जिसे मूलनाड़ी कहते हैं । योग की भाषा में वह मूलनाड़ी स्वास्थ्य की कुंजी है। बहुत सारे पुरुषों और स्त्रियों को जो बीमारियां पैदा होती हैं, उसका केन्द्र है मूलाधार या शक्ति केन्द्र । वह ठीक नहीं रहता है तो बीमारियों पैदा होती रहती हैं। उसको स्वस्थ बनाया जाए तो बीमारियां में बहुत अन्तर आ जाता है । अनेक बीमारियों की जड़ अपान-प्राण के स्थान में छिपी हुई है । जब हम नासाग्र पर ध्यान करते हैं और एकाग्र होते हैं तब यह स्पष्ट होता है कि पार्थिव परमाणुओं पर कंट्रोल करने के लिए यह नासाग्र का स्थान बड़ा महत्वपूर्ण है ।
इन्द्रिय पर्याप्ति और स्वास्थ्य
हम तीन पर ध्यान करें-नासाग्र, कंठ और नाभि चक्र पर | हठयोग की भाषा में नाभिचक्र को मणिपूर चक्र ओर कंठ को विशुद्धि चक्र कहा गया । नासाग्र के लिए योग में कोई अलग नाम नहीं है । किन्तु प्रेक्षाध्यान में इनके नाम है—तैजस केन्द्र, विशुद्धि केन्द्र और प्राण केन्द्र । हम इस सचाई को जानें- नाक का काम केवल गन्ध लेना नहीं है, स्वास्थ्य को ठीक रखना भी नाक का बहुत बड़ा काम है । महावीर का जितना भी वर्णन आता है, उसमें यह प्रायः आता है- महावीर ने नासाग्र पर दृष्टि टिका ली। यह उनके स्वास्थ्य की कुंजी थी । इतनी कठिनाइयां सहने पर भी वे स्वस्थ रहे शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक सभी दृष्टियों से स्वस्थ रहे । कारण क्य था ? नासाग्र पर न्यस्त दृष्टि उनके स्वास्थ्य का एक महत्वपूर्ण रहस्य रह है | आँख का काम देखना है किन्तु मात्र इतना ही नहीं है । आँख भी हमार एक चैतन्य केन्द्र है । आँख का स्वास्थ्य में भी बड़ा योग है । कान केवल
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