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पर्याप्ति और स्वास्थ्य ३९ बाधा आती है, चिन्तन से भी बाधा आती है और आहार के असंयम से भी बाधा आती है । महावीर के स्वास्थ्य विज्ञान पर विचार करें, तो सबसे पहले हमें ध्यान देना होगा कि हमारी आहार पर्याप्ति का कार्य सुचारू रूप से हो रहा है या नहीं हो रहा है, उसमें कोई बाधा तो पैदा नहीं कर रहा है ।
शरीर पर्याप्ति
दूसरा प्रश्न है शरीर पर्याप्ति का । शरीर पर्याप्ति में भी आदमी बाधा डालता है । सामान्य लौकिक भाषा में कहा जाता है कि नाभि टल गई । धरण हो गई, नाभि टल गई । इसे कोई माने या न माने किन्तु यह एक सचाई है—नाभि टलने पर सारी स्थिति गड़बड़ा जाती है । नाभि को ठीक स्थान पर स्थापित किया जाता है और व्यक्ति एकदम स्वस्थ हो जाता है । यह प्रायोगिक बात है, अनुभव की बात है । जो बात स्पष्ट है, वह चाहे विज्ञान के द्वारा सम्मत हो या न हो । हम नहीं मानते कि विज्ञान ही अन्तिम सत्य है अथवा और कोई असत्य ही है | जो प्रत्यक्ष हो रहा है, उसे सच क्यों न माने ? चाहे कोई शास्त्र माने या न माने, प्रत्यक्ष सबसे बड़ा प्रमाण है। हम किसी शास्त्र से बंधे हुए न रहें । प्रत्यक्ष लाभ हो रहा है, उसको अस्वीकार नहीं करेंगे । प्रश्न है— शरीर पर्याप्ति में बाधा कब आती है ? बीमारी के द्वारा ही बाधा आती है । बीमारी को पैदा करने वाले भोजन के द्वारा बाधा आती है | असंयम के द्वारा या वृत्तियों की अधिक उत्तेजना के द्वारा भी बाधा आती है । प्राचीन भाषा में कहा गया- नाभि का स्थान कायव्यूह का स्थान है । यहां पर ध्यान करने से पता लग जाता है कि वात, पित्त और कफ की स्थिति क्या है ? इनका साम्य है या वैषम्य है ? इनका साम्य है तो आरोग्य है और वैषम्य है तो रोग है । इस स्थिति का पता लग जाता है, शरीर के और भी परमाणुओं का पता लग जाता है ।
स्वास्थ्य की कुंजी
इस पर तत्व सिद्धान्त की दृष्टि से विचार किया गया । आग्नेय परमाणु का यह मुख्य केन्द्र होता है । गुदा से लेकर नाभि तक का जो विशेष स्थान है, उसको अपान प्राण का स्थान बतलाया गया है । स्वास्थ्य का बहुत गहरा
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