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३८ महावीर का स्वास्थ्य-शास्त्र
कहा जा सकता है । भाषा पर्याप्ति का केन्द्र भी मस्तिष्क में है । हम भाषा वर्गणा के परमाणुओं को ग्रहण करते हैं, उन पुद्गलों को भाषा के रूप में बदलते हैं और उनका विसर्जन करते हैं तब हमारी वाणी व्यक्त होती है। भाषा पर्याप्ति में तीन कार्य होते हैं, अपने योग्य पुद्गल परमाणुओं को ग्रहण करना, अपने कार्य के अनुरूप उनको बदल देना, परिणमन कर देना, और फिर उनका विसर्जन कर देना, उत्सर्जन कर देना । ये तीन क्रियाएं प्रत्येक पर्याप्ति के साथ होती हैं ।
छठी पर्याप्ति है मनः पर्याप्ति । उसका केन्द्र भी मस्तिष्क में है ।
ये छह पर्याप्तियां हमारी जीवनी-शक्तियां हैं । इनके साथ स्वास्थ्य का बहुत गहरा सम्बन्ध है । यदि आहार पर्याप्ति ठीक काम कर रही है तो स्वास्थ्य अच्छा रहेगा, हम स्वास्थ्य में आने वाली बाधाओं को पार कर सकेंगे । हमारी जो जैविक रोग-प्रतिरोधक क्षमता है, वह बनी रहेगी । यह सारा दायित्व आहार पर्याप्ति का है । जब तक शरीर पर्याप्ति का कार्य ठीक चलेगा तब तक स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। जब आदमी इन पर्याप्तियों की स्वाभाविक अवस्था में कोई बाधा पैदा करता है तब बाहरी कीटाणुओं अथवा जीवाणुओं का आक्रमण मनुष्य को रोगी बना पाता है ।
रोग प्रतिरोधक क्षमता को केवल एक तंत्र के साथ नहीं, इन छहों जीवनीशक्तियों के साथ जोड़ना होगा तब स्वास्थ्य की व्यवस्था अच्छी होगी । जब थायराइड की क्रिया गड़बड़ाती है तब चयापचय की क्रिया गड़बड़ाती है, आदमी बीमार हो जाता है । चाहे थाइराइड का हाइप हो अथवा हाइपर-दोनों क्रियाएं होती हैं तो स्वास्थ्य गड़बड़ा जाता है ।
आहार पर्याप्ति
एक विधान किया गया- कंठ पर सवा घण्टा ध्यान करें । यह विधान इसलिए किया गया कि थाइरोक्सीन का निर्माण या थाइराइड का जो स्राव है, वह ठीक होगा, चयापचय की क्रिया ठीक रहेगी । थायराइड का सम्बन्ध केवल हमारी चयापचय की क्रिया के साथ ही नहीं है, वृत्तियों के साथ भी बहुत है । थायराइड की क्रिया ठीक नहीं है तो भय, डिप्रेशन आदि-आदि अनेक मानसिक अवसाद की क्रियाएं भी प्रारंभ हो जाती हैं । आहार पर्याप्ति की भी सम्यक् व्यवस्था चले, उसमें बाधा न डालें । उसमें बुरे भावों से भी
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