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पर्याप्ति और स्वास्थ्य ३५
यह सारी बात समझाई गई संभिन्नस्रोतोलब्धि के माध्यम से । अतीन्द्रिय चेतना के अंग भी हमारे भीतर हैं । नंदीसूत्र में इस विषय पर बहुत सूक्ष्मता से विचार किया गया । अतीन्द्रिय चेतना को बाहर निकलने के लिए उपयुक्त अवयव, अंग हमारे शरीर के अग्र भाग में भी हैं, शरीर के पृष्ठ भाग में भी हैं, शरीर के दायें-बांये भाग में भी है और ऊपर-नीचे के भाग में भी है । पांचों ओर हमारे शरीर में वे केन्द्र बने हुए हैं, जिनसे हमारी चेतना बाहर निकल सकती है, अतीन्द्रिय विषय को जान सकती है ।
उदाहरण की भाषा में समझाया गया—एक दीया रखा गया और उस पर एक जालीदार ढक्कन रख दिया गया । जो प्रकाश निकलेगा, सीधा नहीं निकलेगा, जाली के छिद्रों में से निकलेगा । ऐसे ही हमारे पूरे शरीर में ऐसे छिद्र बने हुए हैं, जिनमें से चेतना की रश्मियां बाहर निकल सकती हैं । जैसे ज्ञान के संवादी अंग हमारे शरीर में हैं, वैसे ही ज्ञानावरोध के केन्द्र भी हमारे शरीर के भीतर है । वे ज्ञान का अवरोध करते हैं, ज्ञान को बाहर नहीं आने देते । संवेदना के अंग हमारे भीतर हैं और संवेदना को रोकने वाले अंग भी हमारे भीतर हैं । इसका तात्पर्य है-- प्रत्येक कर्म के अंग हमारे शरीर में है
और वे संवादी बने हुए हैं । वर्तमान शरीरशास्त्रियों ने उनकी पहचान की है । संवेदना का संदेश कैसे भीतर तक जाता है, कैसे आता है ? कैसे उसकी अनुभूति होती है ? मोह के संवादी अंग भी शरीर में निर्मित है, वहां मोह कर्म प्रगट होता है । अवरोध पैदा करने वाले, शक्ति को तोड़ देने वाले तत्व भी हमारे शरीर के भीतर हैं । यदि कर्मशास्त्र और कर्मशरीर को सामने रखकर विचार करें तो हमारे शरीर में इतने केन्द्र बने हुए हैं कि सैकड़ों-सैकड़ों प्रकार की शक्तियां जागृत की जा सकती हैं । उनमें एक शक्ति है हमारी स्वास्थ्य की शक्ति । भीतर से जो प्रवाह और स्पंदन आते हैं, हमारे शरीर को प्रभावित करते हैं। ऐसे अनेक रोग हैं, जिनका बाहरी कारण प्रतीत नहीं होता । न कोई चिन्तन, न कोई वायरस, न कोई पारिस्थितिक- कुछ भी नहीं होता किन्तु रोग प्रगट हो जाता है । वे स्पंदन स्थूलशरीर में कर्मशरीर और तैजसशरीर से आ रहे हैं । तैजसशरीर हमारी प्राण शक्ति को पैदा करने वाली शक्ति है । उसमें अव्यवस्था और गड़बड़ी होती है तो शरीर बीमार बन जाता है। इस सारे संदर्भ में स्वास्थ्य की समस्या पर विचार करते समय हमें इन दोनों शरीरों की श्रृंखला पर विचार करना होगा ।
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