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३४ महावीर का स्वास्थ्य-शास्त्र
एक हमारा स्थूल शरीर है, जो दिखाई दे रहा है । दो शरीर सूक्ष्म और सूक्ष्मतर हैं, वे दृश्य नहीं हैं, हमारे सामने प्रत्यक्ष नहीं हैं । दो शरीर वे हैं जो निर्मित किये जाते हैं । मूलतः तीन शरीर मान लें- स्थूल शरीर, जिसका नाम है औदारिक शरीर । सूक्ष्म शरीर, जिसका नाम है तैजस शरीर और सूक्ष्मतर शरीर, जिसका नाम है कर्म-शरीर या कार्मण शरीर । इन तीनों का स्वास्थ्य के साथ गहरा सम्बन्ध है । अनेक यंत्रों का विकास हो जाने पर भी सूक्ष्म और सूक्ष्मतर शरीर को पकड़ा नहीं जा सका है । सूक्ष्मदर्शी यंत्रों के द्वारा स्थूल शरीर के रहस्यों को तो जाना गया है किन्तु इसे प्रभावित करने वाले जो शरीर हैं, वे किसी यंत्र की पकड़ में अभी तक नहीं आए हैं । जैन दृष्टि से विचार करें तो कहा जाएगा यह स्थूल-शरीर सूक्ष्म-शरीर का प्रतिबिम्ब है। यानी कर्म शरीर के जितने स्पंदन है, वे प्रतिबिम्बित होकर इस स्थूल शरीर में अपना प्रतिनिधि निर्मित करते हैं, किसी अंग को निर्मित करते हैं। मानना चाहिए—यह स्थूलशरीर सूक्ष्मशरीर का संवादी अंग है । उदाहरण के द्वारा इसे समझें । कर्म शरीर में इकाई है ज्ञान की । उस इकाई को एक संवादी अंग मिला है मस्तिष्क में | संवेदना का एक निश्चित स्थान है, जहां से संवेदना अपना काम करती है । एक इकाई वेदनीय कर्म की है । वेदना का जो संवेदन हमारा होता है उसका प्रतिबिम्ब भी इस शरीर में निर्मित हुआ है।
ज्ञान : संवादी अंग
ज्ञान के संवादी अंग है पांच इन्द्रियां । इनके द्वारा हमारी चेतना प्रकट होती है । इससे आगे जाएं तो इन्द्रिय चेतना और अतीन्द्रिय चेतना के मध्य एक चेतना है प्रातिभ चेतना अथवा विशिष्ट इन्द्रिय पाटव की चेतना । उसका नाम है संभिन्नस्रोतोलब्धि | एक ऐसी शक्ति हमारे भीतर है, जिस शक्ति का विकास अभ्यास के द्वारा करें तो अंगुली के द्वारा देखा भी जा सकता है, सुना भी जा सकता है, छुआ भी जा सकता है | सब इन्द्रियों का काम एक अंगुली के द्वारा किया जा सकता है | हमारी आंख देखती है । इसका तात्पर्य है कि आंख की कोशिकाओं को हमने इतना विकसित कर लिया, उनमें यह शक्ति पैदा हो गई कि वे पारदर्शी बन गईं। जैसे आंख की शक्ति का विकास किया, वैसे शरीर के किसी भी अवयव का विकास किया जा सकता है ।
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