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भाव और स्वास्थ्य ३१
इसका निष्कर्ष होगा-भय को मिटाना है, अभय को घटित करना है तो भाव की विशुद्धि करो । तुम्हारा भय मिट जाएगा, अभय पुष्ट हो जाएगा।
आभामंडल और भाव विशुद्धि
भाव की विशुद्धि से लेश्या विशुद्ध हो जाती है, आभामण्डल बदल जाता है । प्रेक्षाध्यान में आभामंडल के ध्यान का बहुत प्रयोग होता है । हमारे रंग श्वास के साथ जुड़े हुए हैं । हम श्वास लेते हैं । हमें पता नहीं है कि गृहीत श्वास में कौन सा रंग है । हमारा श्वास कभी काले रंग का होता है, कभी नीले रंग का होता है, कभी हरे रंग का होता है, कभी पीले रंग का होता है, कभी सफेद रंग का होता है । सब रंगों का होता है श्वास । हम जो श्वास लेते हैं, वह कभी खट्टा होता है, कभी मीठा होता है, कभी उसमें तीखापन होता है । बाहर में जितने रस हैं, हमारे श्वास में भी वे रस हैं। कभी हमारा श्वास सुगन्ध से भरा होता है और कभी हमारा श्वास दुर्गन्ध से भरा होता है । कभी हमारा श्वास मृदु स्पर्श का होता है तो कभी हमारा श्वास कठोर स्पर्श का होता है । ये सारी बातें श्वास के साथ जुड़ी हुई हैं। इन सारे पदगलों से सम्बंधित है. आभामण्डल । इन सबके आधार पर देखें श्वास कैसा लिया ? और सूक्ष्मता में जाएं, विश्लेषण करें-रविवार का श्वास कैसा होगा ? रविवार को हम सूर्य की कॉस्मिक रेज ले रहे हैं, सोमवार को हम चंद्रमा कॉस्मिक रेज ले रहे हैं । इनके साथ ग्रहों का सम्बन्ध है, भावों का सम्बन्ध है । ज्योतिष में कहा जाता है कि ग्रहों का प्रभाव होता है । ग्रह सीधा प्रभाव नहीं डालते हैं, किन्तु ग्रहों से आने वाले विकिरण हमारे भावों पर प्रभाव डालते हैं। भाव मन पर प्रभाव डालते हैं, शरीर पर प्रभाव डालते हैं, स्वास्थ्य और अस्वास्थ्य की समस्या सामने आती है, और भी अनेक प्रकार की समस्याएं सामने आती हैं ।
भाव विशुद्धि से जुड़ा है स्वास्थ्य का प्रश्न
हम स्वास्थ्य की समस्या के संदर्भ में थोड़े गहरे में जाएं तो हमें काफी आगे जाना होगा । जितना आज माना जा रहा है, जितना सच सामने आया है वह उतना ही नहीं है, और भी आगे जाना होगा । महावीर ने दो दृष्टियों
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