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भाव और स्वास्थ्य २९
बारह वर्ष के साधनाकाल में पोषक आहार लिया ही नहीं । केवल तपस्या ही तपस्या, उपवास ही उपवास । भोजन भी नहीं और पानी भी नहीं । जैसा रूखा-सूखा मिल जाता, उसी से पारणा कर लेते । कहां विटामिन्स, कहां वसा, कुछ भी नहीं | शरीर को पोषण मिला ही नहीं। फिर भी कभी घबराए नहीं। आज मेडिकल साइंस कहता है— हमारा शरीर बहुत सारे प्रोटीन्स पैदा करता है, वह अनेक तत्वों को पैदा करता है। हमें इस सचाई पर जाना होगाजिस व्यक्ति का भाव-तंत्र बहुत प्रशस्त है, विशुद्ध है, वह अपने शरीर के लिए आवश्यक तत्वों की पूर्ति अपने आप कर लेता है । महावीर ने छह महीने तक भोजन नहीं किया और पानी भी नहीं पिया। किसी डॉक्टर से यह पूछा जाए तो वह कहेगा यह असंभव है, ऐसा हो ही नहीं सकता, किन्तु यह सच है कि ऐसा हुआ है | हम छह महीने की बात छोड़ दें । जिसने अनशन किया, बीस-पच्चीस दिन तक पानी नहीं पिया, उसे देख प्रायः डॉक्टर यही कहते—यह तो हो नहीं सकता । किन्तु जो उनके सामने हो रहा था, उसे अस्वीकार भी कैसे करते ? एक साध्वी ने एक वर्ष तक केवल आछ का पानी पिया, और कुछ भी नहीं खाया | आछ का अर्थ है गर्म छाछ का नितरा हुआ पानी । मेवाड़ संभाग में लोग छाछ को गर्म करते हैं, उस पर जो पानी आता है, थोड़ा रंगीन सा पानी होता है, उस पानी को कहा जाता है आछ का पानी । साध्वीजी ने इस आछ के पानी को पीकर बारह महीने तक जीवन को चलाया और अच्छी तरह चलाया । वे स्वस्थ रहीं । अनेक साध्वियों ने आछ के पानी के आधार पर छह मास और चार मास का तप किया | अनेक डॉक्टर आए, उन्होंने कहा-यह हो नहीं सकता किन्तु जो आँखों के सामने हो रहा था, उसे अस्वीकार भी कैसे कर पाते ? इसका कारण यही है कि जब भाव-तंत्र शक्तिशाली बन जाता है, स्वस्थ बन जाता है, वह कोई भी उत्तेजना पैदा नहीं करता, संवेग पैदा नहीं करता तब उस स्थिति में शरीर भी उसका सहयोग करता है और ऐसे स्रावों का निर्माण कर देता है, जो शरीर के पोषण के तत्व होते हैं ।
भाव और रोग
भाव और रोग—इस पर भी विचार करें । एक बहुत सुन्दर श्लोक कहा गया-अन्तर की विशुद्धि से बाहर की शुद्धि होती है और अन्तर की अशुद्धि
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