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२८ महावीर का स्वास्थ्य - शास्त्र
जाएगा । यदि हमें स्वस्थ रहना है, भयंकर बीमारियों से बचना है तो भाव के प्रति जागरूक होना होगा । चोट लग गई, सर्दी का मौसम आया और जुकाम हो गया - यह एक सामान्य स्थिति है । किन्तु जो बड़ी-बड़ी बीमारियां हैं, उन बीमारियां से बचना है तो हमें एक केन्द्र पर पहुंचना होगा, वह है भाव केन्द्र | अगर हमारा भाव शुद्ध है तो कोई बड़ी बीमारी नहीं हो सकती ।
वीतरागता है स्वास्थ्य का सूत्र
महात्मा गांधी कहते थे- मैं कभी बीमार नहीं बनूंगा । क्योंकि मैं वीतरागता की भी साधना करता हूं और राग-द्वेष से बचने का भी प्रयत्न करता हूं | यह बिल्कुल सही बात है कि वीतराग कभी बीमार नहीं हो सकता । हम इन छोटी-मोटी बीमारियों की बात छोड़ दें, जो आगन्तुक हैं, किन्तु बड़ी बीमारियों का स्रोत है राग और द्वेष, राग और द्वेष के आशय से पैदा होने वाले भावात्मक संवेग । जिनके भावात्मक संवेग प्रबल नहीं हैं, उनके असाध्य बीमारियां नहीं हो सकती । एक व्यक्ति को तेज क्रोध आता है । भयंकर क्रोध का परिणाम यह होता है कि तत्काल हार्टअटैक हो जाता है । वीतराग के हार्टअटैक नहीं होता क्योंकि उसको क्रोध कभी नहीं आता । द्वेष के आए बिना क्रोध भी नहीं आएगा । व्यक्ति शान्त है तो क्रोध की उत्तेजना से होने वाला हार्टअटैक नहीं होगा । यदि निषेधात्मक भाव शान्त है, न किसी के बारे में बुरी बात सोचते हैं, न किसी से ईर्ष्या है, न किसी से घृणा है, तो कैंसर की बीमारी की संभावना बहुत कम हो जाएगी । कैंसर का एक कारण बनता है— मादक वस्तुओं का सेवन । यदि भीतर में भाव शुद्ध है तो मादक वस्तु का सेवन भी नहीं होगा । हम भाव के साथ स्वास्थ्य का विचार करें, भाव जगत् में होने वाले परिवर्तन के साथ स्वास्थ्य का विचार करें तो बहुत बीमारियों से बचा जा सकता है । वीतरागता की साधना केवल आध्यात्मिक साधना ही नहीं है, स्वास्थ्य की साधना भी है ।
महावीर के स्वास्थ्य का रहस्य
यदि हम मेडिकल साइंस की दृष्टि से विचार करें, एक डॉक्टर के व्यू पाइंट से विचार करें तो महावीर कभी स्वस्थ नहीं रह सकते । उन्होंने साढ़े
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