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भाव और स्वास्थ्य २७
कष्ट में हूं, दुःख भोग रहा हूं । हम इन दोनों समस्याओं पर विचार करें। एक ओर डॉक्टर का, निदान केन्द्रों के उपकरणों का मत है कि कोई बीमारी नहीं है, दूसरी ओर रोगी कहता है कि मैं बहुत कष्ट में हूं। विरोधाभास कहां है ? क्या हम माने कि डॉक्टर गलत कह रहा है अथवा निदान के उपकरण गलत सूचना दे रहे हैं ? गलत तो नहीं माना जा सकता। अगर मान लें तो सारी चिकित्सा की पद्धति लड़खड़ा जाएगी । क्या हम बीमार को झूठा मानें ? किसको सच मानें ? किसको झूठ मानें ? यह एक अंतर्द्वद्व
और विरोधाभास की स्थिति है । इसका समाधान खोजा जा सकता है भाव जगत् में।
भाव और आभामंडल
वस्तुतः वह बीमारी न शरीर में उतरी है और न मन पर उतरी है । न वह सोमेटिक है और न वह साइकोसोमेटिक है । वह कायिक भी नहीं है, मनोकायिक भी नहीं है । वह बीमारी है भावात्मक । भाव जगत् में बीमारी उतर गई । इसका एक साक्ष्य हो सकता है वर्तमान मेडिकल साइंस के अनुसंधान । उन अनुसाधनों से यह स्पष्ट हुआ है कि जो बीमारी होने वाली है, उसकी सूचना आभामंडल से मिलती है । आभामंडल यह सूचना दे देता है कि छह अथवा तीन महीने के बाद यह बीमारी आने वाली है | हमारा आभामण्डल हमारी भावनाओं का प्रतिनिधित्व करता है | जैसा भाव वैसा आभामण्डल और जैसा आभामण्डल वैसा भाव । आज कुछ वैज्ञानिक मद्रास और पूना में आभामण्डल का फोटो लेकर बीमारी का निदान कर रहे हैं । पूना में एक डॉक्टर है डॉ० कल्याण गंगवाल । उन्होंने प्रेक्षाध्यान का अभ्यास किया, साहित्य पढ़कर किया । आभामण्डल की जांच के उपकरण भी विकसित कर लिए । वे आभामण्डल का फोटो लेते हैं और उसके आधार पर रोग का निदान करते हैं | आभामंडल में जो रोग का निदान होता है, वह शरीर के अवयव में नहीं होता । वह कोई अवयव की बीमारी नहीं है, मन की बीमारी भी नहीं है किन्तु भावात्मक बीमारी है और उसको जाना जा सकता है आभामण्डल के द्वारा । उसकी सूचना देता है प्राणी का आभामण्डल | अच्छा भाव है तो आभामण्डल अच्छा बन जाएगा । खराब भाव है तो आभामण्डल विकृत बन
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