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भाव और स्वास्थ्य २५
उपजीवी भाव का, अहंकार से उत्पन्न होने वाले उपजीवी भाव का । भय कोई मूल भाव नहीं है | भय उत्पन्न होता है लोभ के द्वारा | जितना लोभ, जितना ममत्व उतना भय । लोभ नहीं है, कोई ममत्व नहीं है तो भय बिलकुल नहीं है । वासना स्वयं का उत्पाद नहीं है। उसका भी उत्पाद होता है रागात्मकता या लोभ के द्वारा | वह भी एक नोकषाय है | कामना का एक प्रकार है। हमारे सामने तीन कोटियां बन गई- एक राग-द्वेष का आशय-रागाशय और द्वेषाशय । दूसरी कोटि बनती है उनकी तीव्रता से उत्पन्न संवेग की । तीसरी कोटि बनती हैं उनके उपजीवी व्यवहार और आचरण की ।
भाव, संवेग और स्वास्थ्य
प्रश्न है-भाव, संवेग और स्वास्थ्य का क्या सम्बन्ध है ? इस प्रश्न पर विचार करें । रागाशय और द्वेषाशय-ये स्वास्थ्य को सीधा प्रभावित नहीं करते । जब भाव संवेग बनते हैं तब वे स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं । वे भी सीधा स्वास्थ्य के प्रभावित नहीं कर पाते | वे प्रभावित करते हैं शरीर के माध्यम से । हमारे शरीर का सर्वोत्तम अंग है मस्तिष्क । मस्तिष्क का एक भाग है लिम्बिक सिम्टम और एक भाग है हाइपोथेलेमस । हाइपोथेलेमस भावना के प्रति बहुत संवेदनशील है । वह भावना को पकड़ता है और भावना से होने वाली प्रवृत्तियों का नियंत्रण करता है । जो भावना पैदा होती है, भाव निर्मित होता है उससे हाइपोथेलेमस प्रभावित होता है और वह दूसरे अंगों को प्रभावित करता है । हमारा जो स्वतःचालित नाड़ी-संस्थान है, ग्रन्थितंत्र है, उसको भी भावना प्रभावित करती है। जैसे पृथ्वी पर हमारा कोई अधिकार नहीं है वैसे ही स्वतःचालित नाड़ी-संस्थान पर हमारा कोई अधिकार नहीं है । भोजन कर लिया, उसका परिपाक होता है, हम चाहे उसके प्रति सचेत रहें अथवा सचेत न रहें । स्वतःचालित होने वाली क्रिया पर नियंत्रण है हाइपोथेलेमस का । हमारी जो नाड़ियां हैं, ग्रन्थियों के जो स्राव हैं, हारमोन्स बनते हैं, उन पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है । अपने आप बनते हैं और अपना काम करते हैं । भावना को पकड़ता है हाइपोथेलेमस । वह नाड़ीतंत्र और ग्रन्थितंत्र के माध्यम से शरीर को प्रभावित करता है ।
एक व्यक्ति ने क्रोध किया । इस संदर्भ में बहुत पुराना मत है, जो
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