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________________ भाव और स्वास्थ्य स्थूल जगत् में जीते हैं इसलिए स्थूल को जानना, पकड़ना हमारे लिए सरल है । हमारा एक जगत् है सूक्ष्म का जगत् । वह अदृश्य है इसलिए अज्ञेय भी बना हुआ है । उसे सरलता से जाना नहीं जा सकता । शरीर स्थूल है । मन शरीर से सूक्ष्म है । हम मन को भी पकड़ लेते हैं । भाव का जगत् बहुत सूक्ष्म है । स्थूल जगत् और सूक्ष्म जगत् के साथ संगम की एक श्रृंखला है | उस श्रृंखला को पकड़ना सरल नहीं हो रहा है । इसीलिए अब तक चिकित्सा के क्षेत्र में स्वास्थ्य के विषय में जो अवधारणाएं बनी हैं वे स्थूलस्पर्शी हैं | दो प्रकार के रोग माने जाते हैं शरीर का रोग और मन का रोग । पहले शरीर का रोग ज्यादा माना जाता था किन्तु अब मन का रोग भी काफी प्रसिद्ध हुआ है । यह माना जाने लगा है कि मन शरीर को प्रभावित करता है | एक शब्द भी प्रचलित हो गया- मनोकायिक रोग । यह एक नया सिद्धान्त विकसित हुआ है । आयुर्वेद में तो पहले से ही यह मान्य था किन्तु मेडिकल साइंस में अब बहुत अच्छी तरह से विकसित हुआ स्वरूप है भाव भाव हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित करता है, यह अवधारणा अब भी स्पष्ट नहीं है । इसका कारण यह है-कि मन और भाव को एक मान लिया गया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003146
Book TitleMahavira ka Swasthyashastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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