________________
चित्त, मन और स्वास्थ्य १९
एक यंत्र है, उपकरण है । कम्प्यूटर चिन्तन करेगा, उससे आत्मा के अस्तित्व पर कोई असर नहीं आएगा । क्योंकि चिन्तन आत्मा अथवा चित्त का मूल काम नहीं है । वह पारिपाश्विक कार्य है । उसका मूल कार्य है अनुभव करना, संवेदन करना, इच्छा करना । मन की कोई इच्छा नहीं होती । यद्यपि हमारे साहित्यकारों और संत लेखकों ने लिख दिया - मन की तृष्णा अनंत है । वस्तुतः मन में कोई तृष्णा होती ही नहीं है । मन पैदा हुआ है शरीर के साथ फिर अनंत तृष्णा कहां से आई ? चित्त और मन का भेद नहीं करते हैं तब उपचार से कह दिया जाता है कि मन की तृष्णा अनंत है । प्राणी का एक लक्षण माना गया है— इच्छा । जिनमें मन का विकास नहीं है, उनमें भी इच्छा होती है । सभी प्राणियों में मन नहीं होता किन्तु इच्छा अवश्य होती है । प्राणी का अकाट्य लक्षण है इच्छा । एक इन्द्रिय वाले जीव, दो इन्द्रिय वाले जीव, तीन इन्द्रिय वाले और चार इन्द्रिय वाले जीव अमनस्क होते हैं । कुछ पांच इन्द्रिय वाले जीव भी अमनस्क होते हैं । उनमें मन का विकास नहीं है किन्तु इच्छा है । इसीलिए मन को जीव का लक्षण नहीं माना गया किन्तु चित्त को माना गया, इच्छा को माना गया । जिसमें इच्छा है, वही प्राणी है । इच्छा किसका कार्य है । इच्छा, आकांक्षा, यह सारा चित्त का काम है ।
चित्त, मन और भाव
चित्त, मन और भाव - तीनों के सम्बन्ध को समझें । ध्यान की दृष्टि से विचार करें तो सूक्ष्म शरीर, अध्यवसाय, लेश्या, चित्त, भाव और मन - यह एक पूरी श्रृंखला है, सूक्ष्म जगत् से लेकर स्थूल जगत् तक का समग्र क्रम है । भीतर सूक्ष्म जगत् में जो कुछ होता है, वह मन के द्वारा अभिव्यक्त होता है ।
अब हम स्वास्थ्य की दृष्टि से विचार करें। एक नियम बन जाएगाअशुद्ध चित्त, अशुद्ध भाव और अशुद्ध मन है तो स्वास्थ्य के लिए समस्या है, स्वास्थ्य अच्छा नहीं रह पाएगा । शुद्ध चित्त, शुद्ध भाव और शुद्ध मन है तो स्वास्थ्य के लिए बहुत ज्यादा अनुकूलता होगी, समस्या नहीं आएगी । साइको सोमेटिक - मनोकायिक बीमारी के लिए केवल शरीर का तंत्र
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org