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१८ महावीर का स्वास्थ्य-शास्त्र
दोनों को पैदा करें और जब चाहें, विराम दे दें । इसीलिए मन कहीं प्रतिष्ठित नहीं है । हम उसको उत्पन्न करते हैं | यदि मन को उत्पन्न न करें तो अमन की स्थिति बन जाए । चित्त की यह स्थिति नहीं है । चित्त को उत्पन्न नहीं किया जा सकता | जैसे शरीर की निरन्तरता है, चित्त की भी हमारे साथ निरन्तरता है | चित्त निरन्तर रहेगा, सोते, जागते निरन्तर बना रहेगा । चित्त अपना काम चालू रखेगा । वह तो हमारी चेतना है जो कभी लुप्त नहीं होती। न्याय-शास्त्र के आचार्यों ने इसलिए कुछ कथन प्रस्तुत किये थे- आज मुझे बहुत अच्छी नींद आई । यह कौन जानता है ? मन तो निष्क्रिय बन गया। मुझे बहुत अच्छी नींद आई, यह कौन अनुभव कर रहा है ? यह चित्त का काम है । किसी को नींद अच्छी नहीं आई । बार-बार इधर-उधर करवटें बदलता रहा । यह कौन अनुभव करता है ? यह मन का काम नहीं है, चित्त का काम है ।
चेतना की एक रश्मि है चित्त । यह सारा चित्त का काम है । यह स्पष्ट होना जरूरी है कि चित्त का कार्य अलग है और मन का कार्य अलग है । चित्त का पहला उत्पाद है भाव । मन उसका पहला उत्पाद नहीं है । चित्त भाव को पैदा करता है । भाव का प्रवाह भीतर से आता है । हमारे जितने इमोशंस है, सारे चित्त के उत्पाद हैं इसीलिए चित्त के अनेक प्रकार हैं । भाव के आधार पर कहा जाता है- यह क्रोध का चित्त है । इसी प्रकार अहंकार का चित्त, माया का चित्त, लोभ का चित्त, घृणा का चित्त, कलह का चित्त आदि-आदि अनेक चित्त बन जाएंगे । ये जो भाव पैदा होते हैं, उन्हें चित्त पैदा करता है । साहित्य में एक शब्द का प्रयोग चलता है- मनोभाव । मनोभाव का तात्पर्य है-मन में भावों का अवतरण । मन भाव पैदा नहीं करता । भाव पैदा करना मन का काम नहीं है । भाव पैदा करता है चित्त । वे भाव मन के पास जाते हैं और फिर मनोभाव बन जाते हैं । आगम-साहित्य में, सांख्य दर्शन और ऋग्वेद में जहां मन पर विचार किया गया, वहां कहा गया-चिन्तन करो, विचार करो, यह मन का काम है ।
कुछ लोग प्रश्न करते हैं- वह दिन दूर नहीं है जब कम्प्यूटर भी चिन्तन करने लग जाएगा । तब चेतना का अस्तित्व कहां रहेगा ? यह प्रश्न कोई समस्या नहीं है । कम्प्यूटर की क्रिया यांत्रिक प्रक्रिया है । मन भी चेतना का
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