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१४ महावीर का स्वास्थ्य - शास्त्र
उन्होंने यूंग के विषय में पुस्तक लिखी "कार्ल गुस्ताव यूंग विश्लेषणात्मक मनोविज्ञान ।” वस्तुतः यूंग की अवधारणा की मीमांसा और विश्लेषण करते हैं तो लगता है कि वे चित्त के निकट पहुंच गए ।
हम चित्त पर विचार करें । पहला प्रश्न है- जानने वाला कौन है ? ज्ञाता कौन है ? हम मन को जानने वाला भी नहीं कह सकते और अनुभव करने वाला भी नहीं कह सकते । जानना और अनुभव करना, ज्ञान और विज्ञान का जो मूल आधार है, वह मन नहीं हो सकता मन की प्रकृति अलग है । मन चंचल है, अस्थाई है । चित्त स्थाई है, दीर्घजीवी है । हमारी सारी चेतना का प्रवाह वहां से आ रहा है ।
आवरण चित्त
पहला है आवरण चित्त । यह चैतन्य को आवृत करने वाला चित्त है । सूक्ष्म शरीर का एक ऐसा प्रवाह आ रहा है, जो चेतना को अनावृत नहीं होने देता, उसको आवृत बनाये रखता है । किन्तु विकार कुछ भी नहीं करता, केवल आवरण बनता है । वह पर्दा लगा देता है तो सीधे नहीं पहुंच सकते ।
अन्तराय चित्त
दूसरा है अन्तराय चित्त । यह बाधा डालने वाला चित्त है । भीतर का ऐसा प्रवाह है, जो बाधा डालता रहता है । व्यक्ति जैसा चाहे, वैसा काम कर नहीं सकता, सोच भी नहीं सकता । हमेशा कार्य में कोई न कोई बाधा आती रहती है । इसका कारण बनता है अन्तराय चित्त ।
मिथ्यात्व चित्त
तीसरा है मिथ्यात्व चित्त । मिथ्या दृष्टिकोण बना रहता है । हम सत्य तक नहीं पहुंच पाते, दृष्टिकोण गलत बन जाता है । जो विधायक भाव और निषेधात्मक भाव की चर्चा आज है, उसका हेतु क्या है ? विधायक भाव न होने का मुख्य कारण मिथ्या-दर्शन चित्त बनता है । यह सही दर्शन नहीं
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