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चित्त, मन और स्वास्थ्य १३
० मिथ्यादर्शन चित्त । ० मोह चित्त ।
ये चार प्रकार के चित्त हैं । इसके और भी सैकड़ों प्रकार बनते हैं पर प्रस्तुत प्रसंग में इन चार चित्तों की चर्चा अपेक्षित है । इनके प्रतिपक्ष में ये चार चित्त हैं
० अनावरण चित्त । ० निर्विघ्न चित्त । ० सम्यग् दर्शन चित्त । ० वीतराग चित्त ।
चित्त के अनेक प्रकार और अनेक कोटियां बनती हैं। चित्त के अनेक प्रकार महर्षि पतंजलि ने भी किए हैं । सांख्य दर्शन में भी चित्त की अवधारणा है । जैन दर्शन में चित्त और मन---दोनों की अवधारणा है । इनकी अवधारणा सांख्य दर्शन में नहीं है, ऐसा नहीं है किन्तु इनका जैन दर्शन में बहुत विश्लेषण हुआ है । महर्षि पतंजलि अथवा पातंजल योग दर्शन के भाष्यकार व्यास ने चित्त के तीन रूप बतलाए— मिथ्या-चित्त, प्रवृत्ति-चित्त और स्मृति-चित्त । वह चित्त, जिसमें रजो गुण और तमो गुण का असर है, मिथ्या चित्त है । उसे ऐश्वर्य, सत्ता और अधिकार प्रिय होता है । प्रवृत्ति-चित्त में तमोगुण की प्रधानता होती है । आसक्ति, मूर्छा, मोह—ये सारे प्रवृत्ति-चित्त में होते हैं। स्मृति-चित्त वह है जहां तमो गुण और रजो गुण समाप्त हो जाते हैं । वैराग्य, अनासक्ति आदि आदि अनेक गुणों का उद्भव और प्रलय होता है।
यूंग की अवधारणा
फ्रायड ने चित्त को माइंड तक सीमित रखा किन्तु यूंग ने माइंड और साइक- ये दो विभाग कर दिए । फ्रायड ने मन के चेतन और अवचेतनये दो संविभाग माने । यूंग ने चित्त के दो संभाग माने-चेतन और अचेतन । इन दोनों की जो इकाई है, वह चित्त है । यूंग ने चित्त का बहुत अच्छा विश्लेषण किया है । उदयपुर में एक बहुत अच्छे विद्वान थे डा० भवानीशंकर उपाध्याय ।
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