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१२ महावीर का स्वास्थ्य-शास्त्र
इस श्लोक की मीमांसा करें तो फलित है कि स्वास्थ्य का सम्बन्ध केवल शरीर से नहीं है, इसका सम्बन्ध हमारे चित्त से है, मन से है, भावों से है । इन सबसे स्वास्थ्य का सम्बन्ध है । केवल सन्तुलित भोजन या पोषण से शरीर स्वस्थ रहता है, इस भ्रान्ति का दूर होना आवश्यक है।
स्वास्थ्य के लिए सबसे पहले आवश्यक है चित्त की स्वस्थता । हमारा चैतन्य एक सूर्य है । चैतन्य की तुलना सूर्य के साथ की गई है । चित्त उस सूर्य की एक रश्मि है । अखण्ड चैतन्य की एक रश्मि का नाम है चित्त । दूसरा तत्व है हमारा मन | मन चित्त के साहचर्य से कार्य करने वाला एक तंत्र है | चित्त है चैतन्यमय और मन है पौद्गलिक । मन का चैतन्य, जो हमें प्रतीत होता है, चित्त के साहचर्य से होता है, चित्त के प्रभाव से होता है । मन स्वयं चेतन नहीं है, अचेतन है । एक प्रश्न है संचालक का | चित्त का संचालक कौन है ? मन का संचालक कौन है ? चित्त संचालित होता है, सूक्ष्म शरीर के द्वारा । मन संचालित होता है चित्त के द्वारा । चित्त मन का संचालक है | चित्त के अपने उत्पाद हैं । चित्त भावों को उत्पन्न करता है, मन को उत्पन्न करता है । भाव और मन-ये दोनों चित्त के उत्पाद हैं। सूक्ष्म शरीर से कुछ स्पदंन आते हैं, वे स्पदंन चित्त तक पहुंचते हैं । चित्त हमारे मस्तिष्क के साथ कार्य करने वाले चेतना है | जब ये स्पदंन आते है। चित्त भावों का निर्माण करता है और उन भावों की क्रिया को संचालित करने के लिए एक तंत्र का निर्माण करता है और वह तंत्र है मन । चित्त के दो उत्पाद हो गए.- एक भाव और एक मन । ये दोनों उसके द्वारा निष्पन्न किये हुए तत्व हैं
अनेक हैं चित्त
भगवान् महावीर ने कहा- यह पुरुष अनेक चित्त वाला है । चित्त भी एक नहीं है, अनेक हैं । अनेक चित्त की व्याख्या करें तो चार प्रकार के चित्त सामने आते हैं
० आवरण चित्त । ० अन्तराय चित्त ।
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