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अस्तित्व और स्वास्थ्य ९ बारे में बहुत कुछ मानते हैं किन्तु मन को मूल तत्व नहीं मानते । मूल तत्व है भाव । एक डॉक्टर चिकित्सा करता है शरीर की, एक साइकोलोजिस्ट चिकित्सा करता है मन की । भाव इनसे भी आगे है । वह कोई मानसिक समस्या नहीं है । वह भावात्मक समस्या है, आंतरिक समस्या है, जहां मन कोई काम नहीं करता ।
वर्तमान शिक्षा क्षेत्र में भी एक भ्रान्ति चल रही है । बौद्धिक विकास और मानसिक विकास को एक माना जा रहा है । किसी का बौद्धिक विकास अच्छा है तो कहा जाएगा– मानसिक विकास अच्छा हो गया । हमारे शब्दों में ऐसी अनेक भ्रान्तियां चलती हैं । वस्तुतः मानसिक विकास और बौद्धिक विकास एक नहीं है । भावात्मक विकास इन दोनों से सर्वथा भिन्न है । क्रोध, मान, माया, लोभ, ईा, भय, घृणा, वासना—ये हमारी भावनाएं हैं | जैसा भाव होगा, मन वैसा ही बन जाएगा । मन मूल नहीं है, मूल है भाव । हमारे अस्तित्व का चेतना का, अन्तरंग प्रतिनिधित्व करने वाला शक्तिशाली तत्व है भाव । भाव की शुद्धि और पवित्रता स्वास्थ्य का रहस्य-सूत्र है ।
भाषा
अस्तित्व का सातवां घटक है—भाषा । भाषा का भी स्वास्थ्य के साथ बहुत गहरा संबंध है । ध्वनि के प्रकंपन हमारे स्वास्थ्य के साथ जुड़े हुए हैं। एक आदमी क्रोध की अवस्था में है | यदि वह बोलेगा तो होठ फड़कने लगेंगे, शरीर कांपने लगेगा, वाणी लड़खड़ा जाएगी । भाषा पर भाव का इतना प्रभाव हो जाता है । एक व्यक्ति ने शक्तिशाली शब्दों का उच्चारण किया, उसकी ध्वनि भावनाओं को प्रभावित करेगी, मन को प्रभावित करेगी । इसी आधार पर ध्वनि चिकित्सा का विकास हुआ । ध्वनि के द्वारा चिकित्सा की जाती है | आज प्रकंपन (वाईब्रेशन) पर बहुत अन्वेषण हो रहे हैं | किस प्रकार की भाषा, किस प्रकार का शब्द और कौन सा उच्चारण हमारे किस तंत्र को प्रभावित करता है ? मस्तिष्क में कहीं गड़बड़ी हो गई, एक शब्द का दस मिनट तक उच्चारण करें, मस्तिष्क एकदम संतुलित और व्यवस्थित हो जाएगा। किसी शब्द का उच्चारण हृदय को प्रभावित करता है, किसी शब्द का उच्चारण लीवर और नाड़ीतंत्र को प्रभावित करता है । इस प्रभाव की सूक्ष्म मीमांसा
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