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८ महावीर का स्वास्थ्य - शास्त्र
की प्रवृत्ति यथार्थ में होती है तब सत्य मनोयोग होता है । जब-जब हम असत्य में मन की प्रवृत्ति करते हैं तब-तब असत्य मनोयोग होता है । यह सत्य मनोयोग मानसिक स्वास्थ्य के लिए औषध है, शरीर और मन दोनों के लिए टॉनिक है । जब असत्य मनोयोग होता है तब शरीर और मन - दोनों की शक्ति का ह्रास होता है । मनोबल की कमी आज की प्रमुख समस्या है। मानसिक तनाव से भी आज का मनुष्य घिरा हुआ है । यदि मन की प्रवृत्ति सत्य में बढ़ जाए तो इन समस्याओं से मुक्ति का सूत्र मिल जाए ।
भाव
अस्तित्व का छठा तत्व है-भाव । शरीर पौद्गलिक है, इन्द्रिय-रचना और श्वास पौद्गलिक हैं । मन और प्राण भी पुद्गल से जुड़े हुए हैं । भाव आत्मा अथवा चेतना से जुड़ा हुआ है । हमारी भावनाएं भीतर से आती हैं । बाहर से उनका कोई सम्बन्ध नहीं रहता । भाव जगत् भीतर का जगत् है । यह स्वास्थ्य के लिए कुंजी का काम करता है । मन बुरा विचार क्यों करता है ? अच्छा विचार क्यों करता है ? इष्ट पुद्गल का ग्रहण क्यों करता है ? अनिष्ट पुद्गल का ग्रहण क्यों करता है ? मन का नियामक और संचालक कौन है ? मन का नियामक है भाव । मन के अच्छे अथवा बुरे कार्य के लिए उत्तरदायी है भाव । जैसा भाव वैसा मन । भाव मन को संचालित करता है । वर्तमान मेडिकल साइंस की दृष्टि से भाव की उत्पत्ति का केन्द्र है लिम्बिक सिस्टम, हाइपोथेलेमस । मस्तिष्क का यह हिस्सा भाव संवेदना का मूल केन्द्र है ।
यदि हम आत्मा और शरीर का संबंध सूत्र खोजें- आत्मा और शरीर का संगम कहां हो रहा है तो कुछ केन्द्र निर्दिष्ट किये जा सकते हैं । पहला केन्द्र है— 'हाइपोथेलेमस', जहां आत्मा और शरीर का संगम होता है । दूसरा केन्द्र हो सकता है— नाभि । वह तैजस केन्द्र है, जहां वृत्तियां अभिव्यक्त होती हैं । मन भाव द्वारा संचालित एक तंत्र है । शरीर और भाषा भी भाव द्वारा संचालित तंत्र हैं जैन पारिभाषिक शब्दावली में इन्हें योग कहा गया है । ये तंत्र भाव द्वारा संचालित हैं ।
भाव के द्वारा हमारी सारी प्रवृत्तियां संचालित हो रही हैं। हम मन के
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