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________________ अस्तित्व और स्वास्थ्य ७ जुड़ा हुआ है । मन स्वस्थ होता है तो शरीर स्वस्थ रहता है । मन अस्वस्थ होता है तो शरीर अस्वस्थ हो जाता है । आचार्य मलयगिरि ने नंदी सूत्र की वृत्ति में इस विषय की बहुत सुंदर मीमांसा की है । एक व्यक्ति को इष्ट भोजन मिले, पौष्टिक भोजन मिले तो उसका शरीर पुष्ट हो जाएगा । यदि उसे अनिष्ट भोजन मिले, कुपोषण मिले तो शरीर क्लान्त और रुग्ण बन जाएगा। इसी प्रकार जब मन अच्छा विचार, अच्छा चिन्तन और विधायक मनन करता है तब वह इष्ट पुद्गलों को ग्रहण करता है । इससे मन प्रफुल्लित होता है और शरीर स्वस्थ बनता है । जब मन में बुरे विचार, बुरी कल्पनाएं और बुरी स्मृतियां उभरती हैं तब मन अनिष्ट पुद्गलों को ग्रहण करता है | इससे मन भी रुग्ण होता है और स्वस्थ शरीर भी अस्वस्थ बन जाता है । शरीर का मन और मन का शरीर पर बहुत प्रभाव होता है । एक सूत्र यह है--- शरीर स्वस्थ है तो मन स्वस्थ रहेगा । दूसरा सूत्र यह हो सकता है—मन स्वस्थ है तो शरीर स्वस्थ रहेगा । वस्तुतः दूसरा सूत्र ज्यादा निर्णायक है। प्रश्न है-मन का स्वास्थ्य कैसे बना रहे ? मन कैसे इष्ट पुद्गलों का अनवरत ग्रहण करता रहे ? सामान्यतः यह माना जाता है- हम चिन्तन कर रहे हैं किन्तु दार्शनिक दृष्टि से विचार करें तो कहा जाएगा--- मन मनोवर्गणा के पुद्गलों को लिए बिना एक इंच भी आगे नहीं बढ़ सकता । जैसे प्राण शक्ति के पुद्गल सारे विश्व में व्याप्त हैं, वैसे ही मनोवर्गणा के पुद्गल, जो मन की क्रिया को संचालित करते हैं, सारे विश्व में व्याप्त हैं । वे पुद्गल इष्ट भी हैं, अनिष्ट भी हैं । इसका तात्पर्य है-- मनोवर्गणा के जिन पुद्गलों का वर्ण, गंध, रस और स्पर्श अनुकूल होता है, अच्छा होता है, वे इष्ट पुद्गल हैं । जिन पुद्गलों का वर्ण, गंध, रस और स्पर्श प्रतिकूल होता है, खराब होता है, वे अनिष्ट पुद्गल हैं । जब-जब मन अच्छा विचार करता है, इष्ट पुद्गलों को लेता है, तब-तब मन की प्रफुल्लता और प्रसन्नता बढ़ती है, साथसाथ शरीर भी स्वस्थ बनता है । जब-जब मन बुरा विचार करता है, ईर्ष्या, कलह और निंदा का विचार करता है, दूसरों को गिराने का चिंतन करता है तब-तब अनिष्ट पुद्गलों का ग्रहण होता है । इससे मन की समस्याएं उलझती हैं, शरीर भी अस्वस्थ बनता है । मन के संदर्भ में दो शब्द अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं—सत्य मनोयोग और असत्य मनोयोग । जब हम सत्य की खोज में मन की प्रवृत्ति करते हैं अथवा मन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003146
Book TitleMahavira ka Swasthyashastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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