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६ महावीर का स्वास्थ्य-शास्त्र
स्वास्थ्य का गहरा संबंध है इसलिए प्राण का सम्यक् होना आवश्यक है । प्राण का आकर्षण कैसे होता है ? शरीर में प्राण का संचय कहां होता है ? प्राण का वितरण कहां से होता है ? प्राण की सारी क्रियाएं कहां से संचालित होती हैं ? इन सब प्रश्नों पर स्वतंत्र रूप से विस्तृत चर्चा अपेक्षित है । वस्तुतः प्राण पूरे विश्व में व्याप्त है । जैनदर्शन में आठ वर्गणाएं मानी गई हैं । पुद्गलों के आठ ऐसे समूह हैं, जो पूरे लोक में, ब्रह्माण्ड में व्याप्त हैं । उनमें एक वर्गणा का नाम है तैजस वर्गणा । हमें कहीं बाहर जाने की जरूरत नहीं है। हमारे आस-पास प्राण का एक वलय बना हुआ है । चारों ओर प्राण की सामग्री विकीर्ण है । यदि हम ठीक प्रकार से लेना जानें, प्राण का संचय करना जानें तो प्राण का विशाल संग्रह कर सकते हैं और प्राण का प्रयोग भी कर सकते हैं | बहत सारी बीमारियां ऐसी हैं, जो प्राण के असंतुलन और अवरोध से पैदा होती हैं। पेरालाइसिस (पक्षाघात) के अनेक कारण माने जाते हैं, किन्तु उसका जो सबसे बड़ा कारण है, वह यह है. जहां प्राण की सक्रियता कम है, वहां निष्क्रियता आ जाएगी । जिस अवयव में प्राण संचार अवरुद्ध होता है, वह अवश्य पक्षाघात से आक्रान्त होता है । प्राण शक्ति का सम्यक संचालन होता रहे तो कोई अवयव निष्क्रिय नहीं हो पाएगा । हम ऑक्सीजन लेते हैं नर्व के साथ या रक्त के साथ | रक्त ऑक्सीजन को प्रत्येक कोशिका तक पहुंचा देता है । इससे हमारी जीवनी-शक्ति बराबर काम करती रहती है, स्वास्थ्य बना रहता है ।
मन
अस्तित्व का पांचवां घटक है—मन । मन सब कुछ भी है और कुछ भी नहीं है । मन का कोई स्थायी अस्तित्व नहीं है + जब मन अस्तित्व में है तब वह सब कुछ है । उसे पैदा न करें तो वह कुछ भी नहीं है । जैसे भाव स्थायी तत्व है, वैसे मन स्थायी तत्व नहीं है । मन उत्पन्न होता है, विलीन हो जाता है । हम जब चाहें, मन को पैदा कर सकते हैं और जब चाहें, मन को विराम दे सकते हैं | मन की अनेक अवस्थाएं हैं | मन चंचल, व्यग्र और एकाग्र होता है । यह समनस्क अवस्था है। किन्तु जब मन होता है, तब वह बहुत कुछ होता है, इसलिए स्वास्थ्य के साथ मन का सम्बन्ध
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