SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४ महावीर का स्वास्थ्य-शास्त्र जीवन अथवा किसी भी प्राणी का आधार है प्राण । प्रेक्षाध्यान में जब श्वासप्रेक्षा का प्रयोग कराया जाता है, तब यह निर्देश दिया जाता है-'श्वास को देखो, श्वास के साथ प्राण को देखो ।' महावीर ने दस प्रकार के प्राण बतलाएंपांच इन्द्रियों के पांच प्राण, श्वासोच्छ्वास प्राण, शरीरबल प्राण, मनोबल प्राण, वचनबल प्राण और आयुष्य प्राण | हमारे शरीर का संचालन प्राण के द्वारा हो रहा है । जो बहुत सारी समस्याएं शरीर में प्रकट होती हैं, शरीर उनकी अभिव्यक्ति का माध्यम बनता है किन्तु वे समस्याएं शरीर-जनित नहीं होती। बीमारी के अनेक कारण माने जाते हैं । आनुवंशिकता बीमारी का एक कारण है । परिस्थिति, वातावरण, वायरस, जर्स आदि भी बीमारी के निमित्त बनते हैं । जब धातुओं का वैषम्य हो जाता है, शरीर के अवयवों का साम्य नहीं रहता, तब व्यक्ति बीमारी से आक्रान्त हो जाता है | ये सारे कारण गलत नहीं है किन्तु केवल ये ही कारण नहीं हैं । प्राण का असंतुलन भी एक प्रमुख कारण है । जब प्राण का असंतुलन हो जाता है तब शरीर के अवयवों की स्वस्थता के होते हुए भी व्यक्ति बीमार हो जाता है । प्राण सूक्ष्म-शरीर और स्थूल-शरीर का संबंध सेतु है । सूक्ष्म-शरीर के साथ जो हमारा संबंध है, वह प्राण के द्वारा होता है । आयुर्वेद में बीमारी का एक कारण माना जाता है कर्म । रोग कर्म से भी होता है । इस विषय में कर्मशास्त्रीय दृष्टि से हमारा भी यह चिन्तन है-कुछ बीमारियां ऐसी हैं, । जनका कारण बाहर में नहीं खोजा जा सकता | जिस शरीर में हमारे पुराने संस्कार संचित हैं, जिसके द्वारा हमारी सारी गतिविधियां संचालित होती हैं, उस सूक्ष्मशरीर में कर्म के बीज रहते हैं । जब वे प्राण के माध्यम से स्थूल शरीर में आते हैं, तब प्राणिक बीमारी का उद्भव होता है । इस दृष्टि से प्राण हमारे स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है । एक व्यक्ति कोष्ठबद्धता की समस्या से ग्रस्त है । वह विरेचन के लिए अनेक प्रकार की दवाइयां लेता है फिर भी विरेचन नहीं होता | प्रश्न होता है—ऐसा क्यों ? इसका कारण यह है कि अपान नाम का प्राण ठीक काम नहीं कर रहा है । यदि अपान-प्राण विकृत हो गया तो आप हजार दवाइयां ले लें, उत्सर्जन सम्यक् नहीं होगा । गुदा से लेकर नाभि तक जो स्थान है, वह अपान-प्राण का स्थान है । यदि वह सम्यक् नहीं है, तो उदासी, बेचैनी, डिप्रेशन, मानसिक अवसाद-- ये सारी स्थितियां बनी रहेंगी। जैसे ही अपान-प्राण ठीक होगा सारी स्थितियां सही हो जाएंगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003146
Book TitleMahavira ka Swasthyashastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy