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अस्तित्व और स्वास्थ्य ३ अस्वस्थ हो सकती है । इन्द्रियो का अधिक उपयोग होगा, इन्द्रियां रुग्ण हो जाएंगी । इन्द्रियों का उपयोग नहीं होगा तो इन्द्रियां निकम्मी हो जाएंगी । आंख से ज्यादा काम लें, आंख रुग्ण हो जाएगी । आंख से बिल्कुल काम न लें, उसकी पटुता कम हो जाएगी | इन्द्रियों का पाटव तब तक रहता है, जब तक इन्द्रियों का समुचित उपयोग होता है । न अतियोग, न अयोग किन्तु सम्यक् उपयोग-यह इन्द्रिय का स्वास्थ्य है ।
श्वास
अस्तित्व का तीसरा घटक है-श्वास । यह सबको प्रभावित करता है। न्याय-शास्त्र में एक न्याय का उल्लेख है-देहली दीपक न्याय । देहली पर रखा दीपक भीतर को भी प्रकाशित करता है, बाहर को भी प्रकाशित करता है। श्वास शरीर को भी प्रभावित करता है, इन्द्रियों को भी प्रभावित करता है, मन और भावों को भी प्रभावित करता है । सबको प्रभावित करने वाला तत्व है श्वास । जैसे मस्तिष्क के पटलों का एक चक्र है, वैसे ही श्वास का एक चक्र है । मस्तिष्क विद्या के क्षेत्र में गहन अन्वेषण के आधार पर कहा गया-दायें
और बांयें मस्तिष्क के कार्यों का एक चक्र है और उनका कालमान निर्धारित है । मस्तिष्क का एक पटल नब्बे मिनट तक सक्रिय रहता है, उसके बाद दूसरा पटल सक्रिय बन जाता है । श्वास के संदर्भ में यही कहा जा सकता है-कभी दायां स्वर सक्रिय रहता है और कभी बांयां स्वर सक्रिय रहता है। श्वास की भी एक लय है, एक चक्र है, जो अनवरत चलता रहता है । जब बांयां श्वास चलता है, मस्तिष्क का दायां पटल सक्रिय बन जाता है । जब दायां श्वास चलता हैं, मस्तिष्क का बायां पटल सक्रिय बन जाता है । स्वास्थ्य के लिए श्वास के इन नियमों को समझना आवश्यक है । स्वास्थ्य पर योग में बहुत कार्य हुआ है । स्वरोदय में भी श्वास पर काफी कार्य हुए हैं। श्वास की इतनी क्रियाएं हैं, उनका इतना वैचित्र्य है कि उसे सम्यक समझ लिया जाए तो केवल श्वास के द्वारा स्वास्थ्य की अनेक समस्याओं का समाधान पाया जा सकता है।
प्राण
अस्तित्व का चौथा घटक है-प्राण । यह अस्तित्व का मूलाधार है । मनुष्य
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