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२ महावीर का स्वास्थ्य-शास्त्र श्वास, प्राण, मन, भाव और भाषा-ये सात अंग हैं ।
अस्तित्व का पहला और दृश्यमान अंग है शरीर | दूसरा अंग है इन्द्रिय । इन्द्रियां शरीर के साथ संलग्न हैं, किन्तु कार्य की दृष्टि शरीर से सर्वथा पृथक हैं। तीसरा अंग है श्वास । यह अस्तित्व और स्वास्थ्य दोनों दृष्टियों से बहुत महत्वपूर्ण है | चौथा अंग है प्राण । प्राणी प्राण के आधार पर जीता है । जीवित का अर्थ है-प्राणधारा का प्रवाह और मृत का अर्थ है प्राणधारा का विनियोजन । जीवन का मौलिक आधार है प्राण । ये चारों शरीर के साथ बहुत जुड़े हुए हैं । विकास की दृष्टि से आगे बढ़ें तो ये तीन तत्व भी अस्तित्व के अंग बनते हैं-मन, भाव और भाषा ।
स्वास्थ्य की दृष्टि से विचार करें तो ये सातों तत्व एक-दूसरे को प्रभावित करने वाले हैं । शरीर मन को प्रभावित करता है और मन शरीर को प्रभावित करता है । श्वास मन को और मन श्वास को प्रभावित करता है । भाव श्वास को और श्वास भाव को प्रभावित करता है । भाषा में भी परिर्वतन आ जाता है । समग्र दृष्टि से विचार करें तो इनमें से किसी को भी छोड़ा नहीं जा सकता । स्वास्थ्य पर विचार किया गया और अनेक शाखाएं विकसित हो गई। एक वह शाखा है, जो शारीरिक बीमारियों की चिकित्सा करती है
और एक वह शाखा है, जो मानसिक समस्याओं की चिकित्सा करती है। चिकित्सा क्षेत्र की ये दो मुख्य शाखाएं हैं ।
शरीर
अनेकान्त दर्शन में एक गौण और एक प्रधान हो सकता है, उनमें सर्वथा भेद नहीं माना जा सकता । शरीर अस्तित्व का पहला घटक है । जब शरीर का प्रत्येक अवयव ठीक काम करता है, पाचन तंत्र और और उत्सर्जन तंत्र सम्यक् काम करते हैं, श्वसन तंत्र, नर्वस सिस्टम और मस्तिष्क सही काम करते हैं तब शरीर को स्वस्थ माना जा सकता है । शरीर के अवयवों में कहीं कोई गड़बड़ी या विकृति आती है, तो शरीर रुग्ण और बीमार बन जाता है।
इन्द्रिय
अस्तित्व का दूसरा घटक है-इन्द्रियां । शरीर के स्वस्थ होने पर भी इन्द्रियां
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